नई दिल्ली, 17 मई (आईएएनएस)। ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन ने देश भर के रेलवे से जुड़े हॉकरों की समस्याओं के समाधान के लिए खान-पान नीति में बदलाव को लेकर अखिल भारतीय खान-पान लाइसेन्सीज वेलफेयर एसोसियेशन की मांगों का समर्थन किया है। देश के इस सबसे बड़े फेडरेशन ने हॉकरों के संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि रेलवे की खान-पान नीति भेदभावपूर्ण है।
फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को लिखे पत्र में कहा है कि 2017 में लागू की गई रेलवे की खान-पान नीति भेदभावपूर्ण है। इसकी वजह से पुराने, गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर रेलवे खान-पान सेवा से जुड़े स्टॉल, ट्रॉली और खोमचेवालों की रोजी-रोटी मारी जा रही है।
उन्होंने चेयरमैन से मांग की है कि इन गरीबों की समस्या को देखते हुए वह मामले में हस्तक्षेप करें और यह सुनिश्चित करें कि रेलवे बोर्ड की तरफ से जारी किए गए 27 फरवरी, 2017 तथा 15 मार्च, 2017 के कॉमर्शियल सर्कुलर संख्या 22 व 20 को वापस लिया जाए। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की है कि पुराने लाइसेंसों को जारी रखा जाए, जिससे कि लाखों लाइसेंसधारकों और वेंडरों तथा उनके परिजनों की जीवनचर्या का संचालन सुचारू रूप सुनिश्चित किया जा सके।
अखिल भारतीय रेलवे खान-पान लाइसेंसीज वेलफेयर एसोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवींद्र गुप्ता ने कहा कि बड़ी कंपनियों के लिए रेलवे ने 2017 में एक मल्टीपरपज स्टॉल पॉलिसी बनाई थी। 12 मार्च, 2019 को रेलवे बोर्ड ने इस पॉलिसी में बदलाव करते हुए एक सकरुलर जारी किया, जिसमें यह प्रावधान है कि भारतीय रेलवे में बुक स्टॉल, केमिस्ट और विविध वस्तुओं के स्टालों इत्यादि के ठेकदारों की सभी इकाइयों का पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा और वे पहले की तरह अपना काम सुचारू रूप से करते रहेंगे। उन्होंने इसे भेदभावपूर्ण करार देते हुए मांग की कि इसके दायरे में खान-पान लाइसेंसधारकों को भी लाया जाय, जिससे कि उनके हितों को सुरक्षित किया जा सके। ऐसा करने से भेदभाव भी समाप्त हो जाएगा।