संत किरील मास्को के एक मठ में भिक्षु थे| दिन-रात ईश-प्रार्थना करते हुए वह सदाचारी जीवन व्यतीत करते थे| एक बार रात को प्रार्थना करते हुए उन्हें माता मरियम की आकाशवाणी सुनाई दी| वह कह रही थीं : जाओ, सीवेर्स्कोये झील के तट पर मठ बनाओ| भिक्षु किरील लंबी राह पर निकल पड़े| झील तक पहुँच कर उन्होंने यहाँ का मनोहारी दृश्य देखा : झील का जल-विस्तार, उसके चारों ओर फैले घने जंगल और घास के मैदानों पर बिछा फूलों का कालीन| यह सुफला धरती उन्हें भा गई और यहीं एक टीले में अपने लिए छोटी सी गुफा-कोठरी बनाकर वह उसमें रहने लगे| शीघ्र ही दूसरे भिक्षु भी वहां आकर बसने लगे| इस प्रकार 1397 में संत किरील मठ का इतिहास आरम्भ हुआ और उसके साथ ही किरीलोव नगरी का भी|
समय के साथ यह मठ रूस का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र बन गया| मास्को के नवाब और फिर ज़ार भी प्रायः यहाँ पूजा करने आते थे, और भारी दान देते थे| मठ बढ़ता गया, अधिकाधिक समृद्ध होता गया| उसमें भव्य गिरजे बनने लगे, भिक्षुओं के लिए कोठरियां, अनाज के बखार और मवेशियों के बाड़े बनाए जाने लगे| 17वीं सदी में इस मठ के गिर्द पक्की चारदीवारी और बुर्जियां बना दी गईं| यह सतर्कता व्यर्थ नहीं रही – 1612-1614 में पोलैंड की सेना ने कई बार इस मठ पर हमला किया पर कभी सफलता नहीं पा सकी|
इन अलंघ्य दीवारों के साये में किरीलोव नगर का इतिहास आरम्भ हुआ| शुरू में तो यह एक गांव ही था जिसमें मठ के लिए काम करनेवाले किसान और कारीगर रहते थे| मठ में सबके लिए काम बहुत था इसलिए दूर-दूर से कुशल शिल्पी, तरखान, बढई, राजगीर, लौहार यहाँ आकर बसते थे| मठ फल-फूल रहा था और उसके साथ ही किरीलोव की खुशहाली भी बढ़ रही थी| लेकिन फिर 18वीं सदी के उत्तरार्ध में शासकों और अमीरों से दान-राशि आनी बंद हो गई| इसके बाद मठ और किरीलोव के लिए कठिन दिन आ गए|
1776 में किरीलोव को नगर का दर्जा मिल गया, किंतु इस घटना का इसके निवासियों की मंथर जीवन-गति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा| देश में जीवन तेज़ी से आगे बढ़ रहा था लेकिन यहाँ काल-चक्र मानो रुक गया था, लगता था यह नगरी निद्रामग्न हो गई है| बीसवीं सदी के आरम्भ में भी नगरी वैसी ही थी जैसी सौ साल पहले| यहाँ कुल 746 मकान थे जिनमें से केवल 20 पक्के थे, बाकी सब लकड़ी के|
1917 की क्रांति ने इस उनींदी नगरी को झकझोर दिया| नई सत्ता ने किरीलोव मठ बंद कर दिया| सौभाग्यवश मठ में जो अमूल्य पांडुलिपियाँ और प्राचीन देवचित्र थे वे नष्ट होने से बच गए – उन्हें मास्को और पीटर्सबर्ग के संग्रहालयों को सौंप दिया गया| कुछ वर्ष बाद संत किरील मठ को भी ऐतिहासिक-वास्तुकलात्मक संग्रहालय घोषित कर दिया गया| 1950 के दशक में यहाँ जीर्णोद्धार कार्य आरम्भ हुआ जो कई दशकों तक चला| मठ के गिरजों और भित्तिचित्रों की दशा दयनीय थी| जीर्णोद्धारकों के पराक्रम के बूते ही संत किरील मठ की अमूल्य धरोहर को बचाया जा सका|
1997 में नवीकृत संत किरील मठ को रूस की सांस्कृतिक धरोहर के विशेषतः मूल्यवान ठिकानों की सूची में शामिल किया गया| अब यहाँ पर्यटक और तीर्थयात्री बड़ी संख्या में आते हैं| इन सबका किरीलोव में हार्दिक स्वागत होता है, आखिर यह नगरी और मठ अटूट सूत्र से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं|