अगरतला/आइजोल, 29 अगस्त (आईएएनएस)। त्रिपुरा के राहत शिविरों में 18 साल से घर वापसी को लेकर गतिरोध झेल रहे रियांग शरणार्थियों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। समस्या यह कि इनके नाम गृह प्रदेश मिजोरम की मतदाता सूची में जोड़े जाएं या नहीं।
अगरतला/आइजोल, 29 अगस्त (आईएएनएस)। त्रिपुरा के राहत शिविरों में 18 साल से घर वापसी को लेकर गतिरोध झेल रहे रियांग शरणार्थियों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। समस्या यह कि इनके नाम गृह प्रदेश मिजोरम की मतदाता सूची में जोड़े जाएं या नहीं।
करीब 31,300 रियांग आदिवासी अक्टूबर 1997 से उत्तरी त्रिपुरा में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में ‘ब्रु’ कहा जाता है। इन्हें पश्चिमी मिजोरम से उस वक्त पलायन करना पड़ा था, जब एक मिजो वन अधिकारी की हत्या के बाद जातीय हिंसा भड़क उठी थी।
मिजोरम की मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनीषा सक्सेना ने आईएएनएस से कहा, “मिजोरम में राज्य चुनाव कार्यालय द्वारा फोटो मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में उन जनजातियों को शामिल नहीं किया जा रहा है, जो त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे हैं। इस बारे में राज्य चुनाव कार्यालय को चुनाव आयोग से कोई निर्देश नहीं मिला है।”
रियांग जनजाति कई बार की कोशिशों के बावजूद मिजोरम लौटने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री ललथनहावला और विभिन्न राजनैतिक दलों ने मांग की थी कि इन्हें राज्य की मतदाता सूची से बाहर रखा जाए।
रियांग शरणार्थियों की संस्था मिजोरम ब्रु डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के महासचिव ब्रुनो माशा ने कहा कि हम चुनाव आयोग से अपील करेंगे कि पहले की तरह इस बार भी सभी सात राहत शिविरों में मतदाता सूची का पुनरीक्षण करवाया जाए।
माशा ने आईएएनएस से कहा, “अगर रियांग शरणार्थियों को पुनरीक्षण प्रक्रिया से बाहर रखा गया तो यह भारत के नागरिकों के एक हिस्से के मूल अधिकारों का घोर उल्लंघन होगा। हम चुनाव आयोग से अपील करते हैं कि वह मिजो सरकार की उन साजिशों से बचे जो राज्य के गैर मिजो आदिवासियों को उनके हक से वंचित करने के कई तरीके अपना रही है।”
त्रिपुरा के सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी देबाशीष मोदक ने आईएएनएस से कहा कि त्रिपुरा के रियांग राहत शिविरों में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की जिम्मेदारी मिजोरम की है।
त्रिपुरा और केंद्र सरकार के दबाव पर मिजोरम सरकार ने रियांग शरणार्थियों को वापस बुलाने के लिए दो जून से सभी सात शिविरों में पहचान शिविर लगाए, लेकिन कोई शरणार्थी इनमें नहीं आया।
माशा ने बताया कि रियांग शरणार्थियों को फिर से बसाने की मिजोरम सरकार की योजना खामियों से भरी और एकपक्षीय है।
उन्होंने कहा कि हम कई बार कह चुके हैं कि हम घर लौटना चाहते हैं। लेकिन इस काम में केंद्र सरकार को शामिल किया जाए। हमारी 10 सूत्री मांगें पूरी की जाएं।
मिजोरम सरकार ने घर वापसी पर रियांग शरणार्थियों के हर परिवार को 85,000 रुपये की सहायता और एक साल तक मुफ्त राशन देने की बात कही है। लेकिन रियांग शरणार्थी 150,000 रुपये प्रति परिवार और दो साल तक मुफ्त राशन चाहते हैं। साथ ही जमीन की भी मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि लौटने पर उन्हें पर्याप्त सुरक्षा दी जाए और जातीय समस्या का राजनैतिक समाधान ढूंढ़ा जाए।
केंद्र सरकार इन शरणार्थियों के रखरखाव के लिए त्रिपुरा को 246 करोड़ रुपये और मिजोरम को 45 करोड़ रुपये दे चुकी है।