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 रिकॉर्ड उपलब्धि का या भाषण का?राष्ट्र क्या यही चाहता है ? | dharmpath.com

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रिकॉर्ड उपलब्धि का या भाषण का?राष्ट्र क्या यही चाहता है ?

August 17, 2015 6:28 pm by: Category: फीचर Comments Off on रिकॉर्ड उपलब्धि का या भाषण का?राष्ट्र क्या यही चाहता है ? A+ / A-

pmइतिहास के पन्नों में 69वां ‘स्वतंत्रता दिवस’ रिकॉर्ड बन गया है। लालकिले की प्राचीर से पहली स्वंतत्रता की अलस्सुबह बने रिकॉर्ड को तोड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में लालकिले की प्राचीर से 72 मिनट का भाषण दिया था, इस बार नरेंद्र मोदी ने करीब सवा 86 मिनट भाषण देकर नया रिकॉर्ड बनाया।

‘टीम इंडिया’, सवा सौ करोड़ भारतीय, सरकार के 15 महीने और बेदाग दामन।

जातिवाद के जहर, संप्रदायवाद के जुनून को विकास के अमृत से कुचलने का आह्वान, भ्रष्टाचारी दीमक मुक्त भारत के सपने को हकीकत में बदलने का विश्वास जैसी अच्छी बातों के बीच विपक्ष पर कटाक्ष और सरकार की उपलब्धि को गिनाने में कोई कंजूसी नहीं।

आतंकवाद, विदेश नीति, यहां तक कि विदेश यात्राओं की उपलब्धि, संसद के गतिरोध जिस पर कुछ घंटे पहले ही राष्ट्र के नाम संबोधन में राष्ट्रपति की चिंता जैसे सभी विषयों पर चुप्पी!

लेकिन छोटी-मोटी नौकरियों में इंटरव्यू प्रथा को समाप्त करने की बड़ी बात। पिछली बार देश की उन्नति में पूर्व सरकारों के योगदान का जिक्र, इस बार आलोचकों पर दार्शनिक कटाक्ष, निराशा में डूबने के शौकीनों को उसी में संतोष मिलता है, जितनी निराशा फैलाते हैं, उतनी गहरी नींद सोते हैं, लेकिन उन पर ध्यान की जरूरत नहीं।

‘ललित गेट, व्यापम घोटाला, वसुंधरा राजे पर संसद का पूरा मानसून सत्र हंगामे को समर्पित। संसद की ड्योढ़ी पर शीष नवाने वाले पहले प्रधानमंत्री इस पर भले ही सदन में नहीं बोले, लेकिन 15 अगस्त को उन्होंने खूब बोला, वह सब कुछ बोला जो विरोधी, संसद में बोलने का ऐसा निर्बाध मौका नहीं देते।

हो सकता है, इस पर अब सवाल खड़े हों, लंबी-लंबी बहस चले, लेकिन देश और दुनिया को जो संदेश देना था, प्रधानमंत्री ने दे दिया। निस्संदेह प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत देश में लगभग 18 करोड़ लोगों के खाते खुले और उसमें 20 हजार करोड़ रुपये जमा हुए, उसका सच यह भी कि 17 प्रतिशत खातों में अब भी 0 बैलेंस है।

उससे भी बड़ा सच यह कि देश में अब भी खाते कम, अनुपात में मोबाइल ज्यादा। इस बार नया स्टार्ट अप-स्टैंड अप इंडिया का आह्वान, कुछ यूं कि देश की हर बैंक शाखा क्रमश: क्षेत्र के एक दलित, एक आदिवासी और एक गरीब महिला को स्टार्ट अप कर्ज दे, जिससे देश में सवा लाख दलित और महिला उद्यमी पैदा होंगे, लाखों को काम मिलेगा, देश का आर्थिक जीवन बदलेगा। 1000 दिन में 18500 गांवों को और 2022 तक हर घर बिजली पहुंचाने का बड़ा वादा भी।

हर स्कूल में ‘शौचालय मिशन’ की सफलता पर खुशी जायज, लेकिन बड़ी सच्चाई यह भी कि 70 प्रतिशत शौचालयों में पानी नहीं। स्वच्छता को लेकर जातिगत आंकड़ों के पिटारे से बाहर हुई रिपोर्ट यदि सच है तो चिंतनीय भी, क्योंकि अभी भी साढ़े 8 लाख लोग सिर पर मैला ढ़ोते हैं!

एलपीजी गैस सब्सीडी का पैसा सीधे उपभोक्ता के खातों में ट्रांसफर से 15 हजार करोड़ रुपयों की वह चोरी रुकी जो बिचौलिये और दलाल करते थे।

‘गिव-इट-अप’ योजना के आह्वान का असर, 20 लाख लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। भारतीयों का त्याग और समर्पण काबिले तारीफ है। सामाजिक सुरक्षा, गरीबों की भलाई, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, परिवार स्वास्थ्य योजना के जरिए 100 दिन में 10 करोड़ लोगों को सुरक्षा और पीएफ का यूनिक नंबर जरूर उपलब्धि है।

वन रैंक वन पेंशन पर रिटायर्ड फौजियों को तिरंगे के नीचे भरोसा। किसानों के प्रति समर्पित सरकार और कृषि मंत्रालय का नाम कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय करना वैसा ही, जैसा पिछली बार योजना आयोग का नाम नीति आयोग किया था।

कृषि सिंचाई योजना और खाद की कालाबाजारी रोकने नीम की परत वाला ऐसा यूरिया लाना, जिसका औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोग न हो पाए, लेकिन बड़ी सच्चाई यह कि कृषि विकास दर 4.1 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत हो गई। 54 प्रतिशत खेत अब भी पानी को प्यासे, फिर भी नाम बदले मंत्रालय से किसान कल्याण की उम्मीद आखिरी आस।

बीते स्वाधीनता दिवस पर जातिवाद, सांप्रदायिकता और प्रांतवाद का जहर समाप्त करने, ऊंच-नीच का भाव खत्म करने का आह्वान कि कम से कम 10 साल तक इस पर ‘मोरॉटोरियम’ (रोक) लगाएं, प्रण यह कि हम सारे तनावों से मुक्ति की ओर जाएं। देश को बहुमत नहीं, बल्कि सहमति के आधार पर चलाने का बड़ा सपना।

अब अबु धाबी के ‘शेख जाएद’ मस्जिद जाना, दूसरी हकीकत यह भी कि साल भर में ही किस दल के लोगों ने सबसे ज्यादा सांप्रदायिक जहर उगला? छुपा नहीं है! रिकॉर्ड भाषण में 44 बार गरीबी, 19 बार ‘टीम इंडिया’ दोहराने के राजनीतिक मायने भी हैं।

‘टीम इंडिया’ का जिक्र भाजपा के चुनावी घोषणा का हिस्सा था! क्या यही अब अब यह ‘टीम इंडिया’ है? लालकिले की प्राचीर के नए रिकॉर्ड के मतलब चाहे जो निकलें, लेकिन इसमें शक नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकहित, देश का विकास और भारत को विश्व की अग्रणी पंक्ति में ले जाना चाहते हैं।

सच यह भी कि वे जिस दल से हैं, उसकी नीतियों, सिद्धांतों की सीमाओं में हैं। फिर भी दुनिया का सिरमौर बनने, सभी को मिलजुलकर सोचना होगा, भेदभाव, अलगाव-विलगाव से इतर दिलों की सामूहिक बात मन की बात बने, सभी दल देश के विकास और सम्मान में साथ हों। कहने की जरूरत नहीं कि यह सब होगा तो सवा सौ करोड़ देशवासी और ‘टीम इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘वल्र्ड इंडिया’ की बात भी इसी लालकिले की प्राचीर से एक दिन गूंजेगी।

अगर राजनीतिक चश्मे से नहीं देखें तो थोड़ा अचरज और हैरानी जरूर होगी, क्योंकि मोदी जिस लोकप्रियता के सहारे भाजपा को सत्ता में लेकर आए, उसकी चमक अब ‘मद्धिम’ पड़ती जा रही है। 15 महीने की सरकार, 15 अगस्त 2015, सदन के बाहर लालकिले की प्राचीर पर बना रिकॉर्ड, क्या यही है लोकप्रिय सरकार की उपलब्धि?

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