भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राजनीतिक पार्टियों को दलगत राजनीति से ऊपर उठने की सलाह दी है. पिछले सत्र में विपक्ष के विरोध के चलते आई अड़चनों के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने कई महत्वपूर्ण अध्यादेश जारी कर डाले. भारत जैसे परिपक्व लोकतंत्र में देश के राष्ट्रपति को सरकार को फटकार लगाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को कहना पड़ा कि सरकार और विपक्षी दलों को साथ मिलकर अध्यादेशों से बचने का कोई रास्ता निकालना चाहिए. लोकसभा में नरेंद्र मोदी की बीजेपी को बहुमत है लेकिन राज्य सभा में वह अल्पमत में है. विपक्ष से सहमति के बिना कानूनों को राज्यसभा में पास करवाना असंभव है, इसलिए उसने समय बचाने के लिए अध्यादेशों का रास्ता चुना है.
हाल ही के दिनों में 10 अध्यादेश जारी किए गए हैं. यह अध्यादेश बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने, कोयला खदानों की नीलामी और भूमि अधिग्रहण को आसान बनाने जैसे बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित हैं. राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, “संसद में हस्तक्षेप के नाम पर कार्यवाही में बाधा डालने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. मतभेद रखना एक स्थापित लोकतांत्रिक तरीका है लेकिन अवरोधों के कारण समय और संसाधन का बहुत नुकसान होता है, और इससे नीति निर्माण की प्रक्रिया पंगु हो जाती है.”
अध्यादेश को एक “असाधारण वैधानिक शक्ति” बताते हुए मुखर्जी ने कहा कि किसी भी स्थिति में “एक शोर मचाने वाले अल्पमत को एक सयंमित बहुमत का मुंह बंद करने नहीं दिया जा सकता.” मोदी की भारतीय जनता पार्टी 30 सालों के बाद बहुमत से चुन कर मई 2014 में सत्ता में आई. इससे उम्मीद जगी थी कि संसद में कानूनों को पास करने में उन्हें आसानी होगी. समस्या यह है कि संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में बीजेपी को बहुमत नहीं है, जहां कांग्रेस और क्षेत्रीय दल मिलकर कट्टरवादी हिंदू संगठनों के जबरन धर्मांतरण के खिलाफ विरोध जताते रहे हैं.
रोके गए नए अध्यादेश
राष्ट्रपति की चेतावनी के बाद सरकार ने बाकी अध्यादेशों को रोक दिया है. मोदी सरकार इन अध्यादेशों के जरिए संसद में रोके गए कानूनों को जल्द से जल्द लागू करना चाहती है और निवेशकों के लिए उचित माहौल बनाना चाहती है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रोका गया ताजा अध्यादेश आर्बिट्रेशन से संबंधित था जिसमें तय किया है कि जज को कारोबारी विवादों में 9 महीने के अंदर फैसला सुनाना होगा.
भारत विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए अपने यहां लोकतंत्र और स्वतंत्र न्यायपालिका की दुहाई देता रहा है लेकिन पश्चिमी देशों की कंपनियों को शिकायत है कि भारत में अदालतों में मामला निबटने में सालों लग जाते हैं जिससे निवेशकों का भरोसा प्रभावित होता है.
संविधान में अध्यादेश का प्रावधान तब के लिए किया गया है, जब संसद की कार्यवाई ना चल रही हो और किसी मुद्दे पर तुरंत कानून लाए जाने की जरूरत हो. अध्यादेश को तुरंत प्रभाव से लागू माना जाता है लेकिन उसे संसद के अगले सत्र में पेश करना होता है और सत्र के शुरू होने के छह हफ्ते के अंदर पास कराना होता है.
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