रामायण के अनुसार काम के वश में होकर जब रावण सीता को लंका ले गया। उसने उसे सुंदर भवन में ठहराया। जो अशोक वाटिका के निकट था। सीता तप्स्विनी के वेष में वहां ही रहती और तप उपवास किया करती थी। वह इसी कारण दुबली हो गई।रावण ने सीता की रक्षा के लिए राक्षसियों को नियुक्त कर दिया जो बहुत भयानक दिखाई पड़ती थी। वे सब के सब सीता को सब ओर से घेरकर बहुत ही सावधानी के साथ रात-दिन सेवा करती थी।
वे बहुत ही कठोर तरीके से उन्हें धमकाती ओर कहती थीं। आओ हम सब मिलकर इसको काट डालें और तिल जैसे छोटे-छोटे टूकड़े करके खा जाएं। उनकी बातें सुनकर सीता ने कहा-तुम लोग मुझे जल्दी खा जाओ। मुझे अपने जीवन का थोड़ा भी लालच नहीं है। मैं अपने प्राण दे दूंगी लेकिन रामजी के अलावा कोई परपुरुष मुझे छू भी नहीं सकता। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। सीता की बात सुनकर एक राक्षसी रावण को सुचना देने चली गई।
उनके चले जाने पर एक त्रिजटा नाम की राक्षसी वहां रह गई। वह धर्म को जानने वाली और प्रिय वचन बोलने वाली थी। उसने सीता को संात्वना देते हुए कहा सखी तुम चिमा मत करो। यहां एक श्रेष्ठ राक्षस रहता है जिसका नाम अविंध्य है। उसने तुमसे कहने के लिए यह संदेश दिया है कि तुम्हारे स्वामी भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ कुशल पूर्वक हैं। वे इंद्र के समान तेजस्वी वनराज सुग्रीव के साथ मित्रता करके तुम्हे छुड़वाने की कोशिश कर रहे हैं। अब रावण से तुम्हें नहीं डरना चाहिए क्योंकि रावण ने नल कूबेर की पत्नी रंभा को छुआ था तो उसे शाप मिला था कि वह किसी पराई स्त्री के साथ उस इच्छा बिना संबंध नहीं बना पाएगा और अगर ऐसा किया तो वह भस्म हो जाएगा।