रायपुर, 8 अक्टूबर – छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ठंड के दस्तक देते ही एक बार फिर आसमान से आफत की काली राख बरसनी शुरू हो गई है। पूरा रायपुर शहर इस काली राख से बेहद परेशान है। यह राख उद्योगों की चिमनियों से निकलकर हवा के साथ उड़कर घरों की छत, पेड़-पौधों पर जमती चली जा रही है।
राजधानी के आसपास छोटे-बड़े 350 से अधिक उद्योग संचालित हो रहे हैं, जो 24 घंटे सिर्फ और सिर्फ हमारे वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे हैं। रहवासी इससे खासे परेशान हैं। रायपुर तो भारत के सबसे प्रदूषित शहर की श्रेणी में अव्वल है।
छत्तीसगढ़ पर्यावरण मंडल के एपीआरओ एपी सावन का साफ साफ कहना है कि उद्योगों की नियमित जांच की जाती है, लगातार नोटिस भी जारी किए गए हैं। प्रदूषण का स्तर बीते सालों की तुलना में कम हुआ है, और लगातार घट रहा है। प्रदूषण नहीं हैं, ऐसा कहना गलत होगा। मंडल प्रयास कर रहा है। क्षेत्रीय कार्यालय स्तर पर टीमें बनी हुई हैं, जो नियमित मॉनीटरिंग का काम कर रही है।
इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की कबीरनगर स्थित पर्यावरण संरक्षण मंडल के कार्यालय की छत पर भी काली राख इकट्ठा है। पास में उद्योग से लगातार काला धुआं निकलता जा रहा है। यही हाल हीरापुर स्थित क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यालय का भी है। यहां लगे पौधों पर काली राख जमी हुई है।
मंडल के कुछ अफसरों ने नाम जाहिर न करने का आग्रह करते हुए बताया कि प्रदूषण और बढ़ेगा, क्योंकि कई उद्योगों के आवेदन आज भी लंबित हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. शम्स परवेज का कहना है कि उद्योगों में कोयला जलाने किए जो सिस्टम लगाया गया है और जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह पुरानी पड़ चुकी है। पैसा बचाने के लालच में उद्योगपति पुरानी टेक्नोलॉजी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। उद्योगों को खोलने में भी नियमों-मानकों का पालन नहीं हो रहा है।
बीरगांव निवासी डॉ. अनिल दलाल बताते हैं, “मेरे क्लिनिक में 30 फीसदी मरीज एलर्जी के आते हैं। नाक से अचानक पानी बहना, छींक आने की तकलीफ लेकर आते हैं। यह सबकुछ प्रदूषण के कारण हो रहा है। आसपास इंडस्ट्रीज से लगातार धुआं निकलता है, जिसमें कार्बन पार्टिकल होते हैं जो नुकसान पहुंचा रहे हैं।”
हालत यह है की अब तो काली राख और औद्योगिक धुएं ने बीमारियों को जन्म देना शुरू कर दिया है। बिरगांव, उरला, सिलतरा, धरसींवा, कबीर नगर, हीरापुर और उद्योगिक क्षेत्रों के अलावा पूरे शहर में सांस संबंधी बीमारियां, दमा, एलर्जी, चर्मरोग के मरीजों की संख्या बढ़नी शुरू हो चुकी है, क्योंकि राख और धुआं राजधानी के बीचोबीच तक जा पहुंचा है।
अब तो स्थिति यह है कि सुबह सुबह छत में काली परत जमी हुई होती है। बारिश की वजह से यह काली राख छत के किनारों पर आकर जमा हो गई है। रायपुर, कोरबा जिले में सर्वाधिक उद्योग हैं और ये दो जिले सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। अकेले रायपुर में साल 2013 में 138 उद्योगों की स्थापना व संचालन की सम्मति दी गई तो वहीं 271 उद्योगों की अनुमति का नवीनीकरण किया गया, जबकि सिर्फ गिनती के उद्योगों पर ही कार्रवाई हुई।
राजधानी रायपुर के सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. राकेश गुप्ता की माने तो अनियंत्रित इंडस्ट्रालाइजेशन की वजह से लोगों में सांस संबंधी बीमारियां जैसे दमा, एलर्जी, चर्मरोग भी हो रहे हैं। फैक्ट यह है कि आपको आज इस बीमारी के लक्ष्ण दिखाई नहीं देंगे और आप पहचान भी नहीं पाओगे, लेकिन आने वाले कुछ सालों में जब पता चलेगा, तब तक देर हो चुकी होगी। राजधानी में स्थिति बेहद खराब है।
भनपुरी निवासी रमादेवी शुक्ला बताती है, “40 साल से मैं यहां पर रह रही हूं। 15 साल पहले तक हम गर्मी के दिनों में छत पर सोते थे, लेकिन अब सो जाएंगे तो सबरे तक काले पड़ जाएंगे। नंगे पांव निकल जाएं तो पैर काले पड़ जाते हैं। घर छोड़कर तो जा नहीं सकते, रहना मजबूरी है।”
राजधानी के डब्ल्यूआरएस कॉलोनी निवासी राजू दिवाकर कहते हैं कि प्रदूषण की स्थिति यह है कि हम घर से बाहर नहीं निकल सकते। छत पर छोड़िए, घर के अंदर इतनी कालिक जमा हो जाती है कि हर 10-12 दिन में सफाई करनी होती है। लोगों के बीमार पड़ने की वजह भी प्रदूषण है। उरला, सिलतरा में लगातार फैक्टरियां खुलती चली जा रही हैं।