नई दिल्ली, 7 फरवरी-अयोध्या में राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रस्ट की घोषणा की है जिसके प्रारूप और प्रतिनिधित्व को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। ऐसे में, अब दलित नेता जनहित याचिका दायर करने पर विचार कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ नेताओं ने ही ओबीसी सदस्यों को ट्रस्ट में स्थान नहीं दिए जाने को लेकर आपत्ति जाताई है। राम मंदिर के निर्माण को लेकर आंदोलन में आगे रहे और इस मामले में सीबीआई की जांच का सामना कर रहे पार्टी नेताओं व दो पूर्व मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह व उमा भारती ने समिति में ओबीसी के लिए आरक्षण की मांग की है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय वर्ष 1992 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने कहा, “सिर्फ दलितों को ही नहीं, बल्कि पिछड़ों को भी राम मंदिर ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। वे भी उतने ही राम भक्त हैं, जितने अन्य।”
दलित नेताओं के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे इस मामले को अदालत में चुनौती देने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि ‘सरकारी निकाय को आरक्षण की नीति का पालन करना चाहिए’ जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
एक सूत्र ने कहा, “लेकिन, वे अभी इस पर कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा कर रहे हैं कि क्या किसी ट्रस्ट के संविधान को चुनौती दी जा सकती है या नहीं।”
दिल्ली में रविदास मंदिर के पुनर्निर्माण के अदालती आदेश के बाद दलित नेता सकारात्मक हैं।
ट्रस्ट में शामिल सदस्यों के प्रतिनिधित्व को लेकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच भी मतभेद की स्थिति है। पार्टी के एससी/एसटी नेता उदित राज ने ट्रस्ट में सिर्फ एक दलित व्यक्ति को स्थान दिए जाने पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा, “पिछली जनगणना के अनुसार दलितों की आबादी ब्राह्मणों से तीन गुना अधिक है। फिर सरकार ने राम मंदिर को ब्राह्मणों पर ही क्यों छोड़ दिया है?”
सोशल मीडिया पर उनका विरोध करते हुए कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य जितिन प्रसाद ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की, “विषय जो भी हो, कांग्रेस की परंपरा किसी भी जाति या समुदाय पर हमला करने की नहीं है।”