नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भगवान राम, कृष्ण, रामायण, गीता और इसके लेखकों महर्षि वाल्मीकि तथा महर्षि वेदव्यास देश की विरासत का हिस्सा हैं और भारतीय संसद में एक कानून लाकर उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिए जाने की जरूरत है.
फेसबुक पर भगवान राम और कृष्ण के खिलाफ अश्लील टिप्पणी करने के आरोपी आकाश जाटव उर्फ सूर्य प्रकाश को जमानत देते हुए जज जस्टिस शेखर कुमार यादव ने ये टिप्पणी की.
कोर्ट ने कहा, ‘आरोपी द्वारा भारत के महापुरुषों भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के बारे में की गई अश्लील टिप्पणी, इस देश के बहुसंख्यक लोगों की आस्था पर चोट है और यह समाज में शांति और सद्भाव को बिगाड़ती है और इसका खामियाजा निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ रहा है.’
इसके अलावा यह भी टिप्पणी की गई कि अगर अदालत ऐसे लोगों के साथ उदार होती है, तो यह उनके लिए मनोबल बढ़ाने वाला होगा और उनका आचरण देश में सद्भाव को खराब करेगा.
कोर्ट ने आकाश जाटव को जमानत देते हुए राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह उनके पक्ष में है, जो इस देश के ‘राम’ को मानते हैं.
जस्टिस यादव ने कहा, ‘राम इस देश के हर नागरिक के दिल में बसते हैं, वह भारत की आत्मा हैं. इस देश की संस्कृति राम के बिना अधूरी है.’
कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान एक उदार दस्तावेज है, जो प्रत्येक नागरिक को ईश्वर में विश्वास करने या न करने की स्वतंत्रता देता है.
उन्होंने कहा कि नास्तिक को ईश्वर में विश्वास न करने की स्वतंत्रता है, लेकिन वह भगवान की अश्लील तस्वीरें नहीं बना सकता है और इसे सार्वजनिक रूप से प्रसारित नहीं कर सकता है.
अदालत ने कहा, ‘भगवान राम और भगवान कृष्ण महान पुरुष हैं, जिनकी देश के अधिकांश लोग हजारों वर्षों से पूजा कर रहे हैं. पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब महापुरुषों के बारे में अभद्र टिप्पणी की हर नागरिक द्वारा निंदा की गई है, चाहे वे हिंदू हों या फिर मुस्लिम, ईसाई या सिख हों.’
जज शेखर कुमार यादव ने इस बात पर भी जोर दिया कि भगवान कृष्ण और राम के सम्मान के लिए एक कानून लाने के साथ-साथ ‘देश के सभी स्कूलों में बच्चों को इसे अनिवार्य विषय बनाकर पढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति संस्कारी बनता है और उनके जीवन मूल्यों तथा उनकी संस्कृति के बारे में जागरूक होता है.’
कोर्ट ने वर्तमान शिक्षा पाठ्यक्रम पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि इतिहासकारों ने चाटुकारिता या चापलूसी और स्वार्थ के कारण भारतीय संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा था, ‘गोरक्षा का कार्य केवल एक धर्म संप्रदाय का नहीं है, गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का कार्य देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक का है चाहे वह किसी भी धर्म का हो. जब गाय का कल्याण होगा, तभी देश का कल्याण होगा.’
अदालत ने आगे कहा था, ‘गाय का भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है और गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है. भारतीय वेद, पुराण, रामायण आदि में गाय की बड़ी महत्ता दर्शायी गई है. इसी कारण से गाय हमारी संस्कृति का आधार है.’
अदालत ने कहा था, ‘गाय के महत्व को केवल हिंदुओं ने समझा हो, ऐसा नहीं है. मुसलमानों ने भी गाय को भारत की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना और मुस्लिम शासकों ने अपने शासनकाल में गायों के वध पर रोक लगाई थी.’
जज शेखर कुमार यादव द्वारा पारित आदेश में यह भी कहा गया था कि वैज्ञानिकों का मानना था कि गाय एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन लेती और छोड़ती है.