सिडनी, 29 जनवरी (आईएएनएस)। मधुमक्खियों के समूह में सिर्फ रानी मक्खी ही संसर्ग करती है और बाकी मक्खियों में ज्यादातर उसकी संतानें होती है। लेकिन उसकी संतानों में जो युवा मादा मक्खियां होती है वे भी छत्ते में संसर्ग नहीं कर पाती, क्योंकि रानी मधुमक्खी एक ऐसा रसायन छोड़ती है जिससे युवा मादा मक्खियों के डीएनए में परिवर्तन आ जाता है। इसके कारण वह संसर्ग की तरफ आकर्षित नहीं होती और छत्ते में मजदूरी के काम में जुटी रहती हैं।
शोध से यह पता चला है कि मादा मक्खी सामान्य मजदूर बनेगी या रानी मक्खी बनेगी यह उसके डीएनए में हुए परिवर्तन से ही निर्धारित होता है।
ऑस्टेलियन राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के जीव विज्ञानी ल्यूक होलमान का कहना है, “जब रानी मक्खी द्वारा छोड़े गए फेरोमोंस रसायन से छत्ते की अन्य मादा मजदूर मक्खियों को वंचित कर दिया गया। तो वे आलसी हो गई और कामकाज बंद कर खुद के सजने-संवरने पर ध्यान देने लगी और अंडे सेने लगी।”
होलमान का कहना है कि यह काफी आश्चर्यजनक था, ऐसा लगता था कि रानी मक्खी के फेरोमोंस ने मजदूर मक्खियों के डीएनए को बदल दिया हो।
जहां रानी मक्खी हजारों संतान पैदा करती है और कई सालों तक जिन्दा रहती है, वहीं मजदूर मक्खियों का जीवनकाल छोटा होता है और उनमें ज्यादातर बांझ होती हैं। जबकि उनका और रानी मक्खी का डीएनए एक ही होता है।
उनका कहना है कि इस शोध से हमें जीव-जंतुओं के अद्भुत सहकारी व्यवहार के विकास को समझने में मदद मिलेगी। यह कई मायने में मानव विकास से परे एक चरण है।
यह शोध बॉयलॉजी लेटर में प्रकाशित किया गया है।