बाड़मेर- राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से लगे गांवों में सूखे की स्थिति के कारण वहां निवास कर रहे ग्रामीण पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं।
यदि स्थानीय गैर सरकारी संगठनों पर भरोसा किया जाए तो बाड़मेर जिले के 100 से अधिक गांवों के सामने पानी और चारे का भयानक संकट पैदा हो गया है।
जयपुर स्थित संगठन ‘लीगलमित्र’ के रितेश शर्मा ने आईएएनएस को बताया, “राज्य के इस हिस्से में अधिकांश आबादी की आजीविका पशुपालन पर निर्भर है। अब हालत यह है कि पशुओं को तो छोड़ ही दीजिए लोगों के लिए भी पीने का पानी नहीं रह गया है। पशुओं का चारा भी समाप्त हो चुका है, जिसके कारण ग्रामीण गांव छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। यहां तक कि लोग अपने पशुओं को गांव में ही छोड़कर चले जा रहे हैं।”
राज्य सरकार का कहना है कि वह फसलों को हुए नुकसान पर जिलाधिकारी की रिपोर्ट मिलने के बाद ही कोई कदम उठा सकती है। जिलाधिकारी बुधवार तक रिपोर्ट सौंप सकते हैं।
लकीडेलाई गांव के रहने वाले काक्रा खान ने राज्य और केंद्र सरकार द्वारा कोई कदम न उठाए जाने पर दोनों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आ रहा कि सरकार को हमारे मरते पशु, और भोजन-पानी और काम की तलाश में लोगों का गांव छोड़ना क्यों नहीं दिख रहा।”
अजबनी गांव के अली खान को परिवार और अपने पशुओं सहित जैसलमेर के मोहनगढ़ इलाके में जाकर बसना पड़ा।
अली खान ने आईएएनएस से कहा, “हम क्या कर सकते हैं? सरकार कुछ कर ही नहीं रही। मैं अकेला नहीं हूं। पशुओं के लिए चारे की तलाश में बड़ी संख्या में लोगों को गांव छोड़ना पड़ा।”
शोबला गांव के रहने वाले गणेश्वर मेघवाल तो अपनी व्यथा बताते-बताते रो पड़े।
मेघवाल ने कहा, “बहुत मुश्किल घड़ी है। कोई भी हमारी मदद नहीं कर रहा..हमारे सामने हमारे पशु दम तोड़ रहे हैं। कैसी त्रासदी है कि हम कुछ नहीं कर सकते।”
मेघवाल ने कहा, “इस मुश्किल घड़ी में मुझे सरकारी मदद का कोई भरोसा नहीं था, इसलिए मैंने परिवार सहित गांव छोड़ गुजरात जाने का फैसाल किया। मैं अपनी गायों को इस तरह मरते नहीं देख सकता।”
हम जहां कहीं भी गए हमें बताया गया कि औसतन रोज दो से तीन गायें मर रही हैं। बाड़मेर में औसतन हर वर्ष 275-280 मिलीमीटर बारिश होती है। लेकिन इस वर्ष जिले के अधिकांश गांवों में सिर्फ 30-40 मिलीमीटर बारिश हुई है।
जिला परिषद के अध्यक्ष एवं जिले के प्रभारी कलेक्टर आर. पी. मिश्रा ने आईएएनएस से कहा, “जी हां, यह सच है कि इस वर्ष जिले में बेहद कम बारिश हुई है। जैसलमेर और बाड़मेर जिले के कई हिस्सों में हर दो-तीन वर्ष में सूखे जैसी स्थिति बन जाती है। हम अभी फसलों को हुए नुकसान का आकलन कर रहे हैं, जिसकी रिपोर्ट 15 अक्टूबर तक सरकार को सौंप दी जाएगी। इसके बाद ही राहत कार्य शुरू हो पाएगा।”
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने आईएएनएस से कहा, “सूखे के कारण यहां लोगों का जीवन कठिन हो गया है। फसलों को हुए नुकसान की रिपोर्ट आने तक सरकार को प्रभावित इलाकों के बाशिंदों के लिए अनौपचारिक रूप से कुछ न कुछ राहत पहुंचाना चाहिए।”
इन इलाकों में स्थिति इस कदर गंभीर हो चुकी है कि बकरी और भेड़ विक्रेताओं को खरीदार तक नहीं मिल रहे हैं।
इससे पहले जहां एक बकरी 2,500 से 3,000 रुपये में बिकती थी, वहीं अब इन्हें 1,000 से 1,500 रुपये में भी खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं है।