वाशिंगटन, 15 अप्रैल (आईएएनएस)। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा मासिक बांड खरीदारी योजना बंद किए जाने के बाद आम तौर पर फेड के आलोचक रहे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने फेड अध्यक्ष जेनेट येलेन की प्रशंसा करते हुए कहा कि वर्तमान अध्यक्ष येलेन उभरते बाजारों के प्रति सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रशंसा की हकदार हैं।
समाचार पत्र वाल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक साक्षात्कार में राजन ने कहा, “निश्चित रूप से वे (फेड) उभरते बाजारों पर ध्यान दे रहे हैं और उन पर ध्यान देने की बात कर रहे हैं। मेरे खयाल से इसका स्वागत होना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं कि येलेन के कार्यकाल में यह बदलाव आया है।”
पहले जब बेन बर्नाके फेड अध्यक्ष थे, तब राजन अक्सर उनकी नीतियों की आलोचना करते थे, जिसके कारण उभरते बाजारों से अचानक ही बड़े पैमाने पर पूंजी बाहर निकल जाती थी या अचानक ही काफी पूंजी की बाढ़ आ जाती थी। इसके प्रभाव से कई उभरते बाजारों के लिए निपटना मुश्किल हो जाता था।
गवर्नर यहां विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की बसंत बैठक में हिस्सा लेने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ आए हैं। जेटली के प्रतिनिधिमंडल में उनके अलावा आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम भी हैं।
राजन ने कहा कि फेड के तरीके में आए बदलाव से दूसरे देशों के लिए स्थिति थोड़ी सुविधाजनक होगी, जिसमें कमोडिटी मूल्य में गिरावट के कारण कमोडिटी निर्यातक देशों पर पड़ने वाले प्रभाव और कुछ उभरते बाजारों में उच्च डॉलर ऋण का कंपनियों पर पड़ने वाला प्रभाव शामिल है।
राजन 2003 से 2007 तक आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री थे।
उन्होंने रिजर्व बैंक की दर में और कटौती के सवाल पर कहा कि काफी कुछ महंगाई दर और मानसूनी बारिश पर निर्भर करता है।
चीन से मिलने वाली चुनौती के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वह चीन मामलों के विशेषज्ञ नहीं हैं और जो सबकी राय है, वही उनकी भी राय है। उन्होंने कहा कि छोटी अवधि की चुनौती कई मौद्रिक और वित्तीय राहत कार्रवाइयों के कारण खत्म हो चुकी है।
यह पूछने पर कि क्या केंद्रीय बैंक महंगाई दर को लक्षित करने के मुद्दे को ज्यादा ही तूल नहीं दे रहे हैं, राजन ने कहा, “आज की स्थिति पहले जैसी नहीं है, जब महंगाई के लक्ष्य तय किए गए थे। सवाल यह है कि जब केंद्रीय बैंकों ने सामान्य मौद्रिक नीति, शून्य ब्याज दर, नकारात्मक ब्याज दर, क्वोंटेटिव ईजिंग जैसे सभी विकल्प अपना लिए हैं और फिर भी दुनिया भर में महंगाई दर नकारात्मक दायरे में है, तब भी क्या यह समझना चाहिए कि केंद्रीय बैंकों के पास काफी विकल्प बचे रह गए हैं।”
उन्होंने कहा, “क्या यह नहीं समझना चाहिए कि आज केंद्रीय बैंकों की नीति का उतना असर नहीं पड़ रहा है, जितना पहले पड़ता था। संभवत: यह समय दूसरों के लिए कोशिश बढ़ाने का है।”