नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद के सपनों का भारत साकार होने के करीब है और इसके लिए पूरे समाज को साथ मिलकर काम करना होगा.
हरिद्वार में बुधवार को साधु संतों को संबोधित करते हुए भागवत ने ईश्वर और आम आदमी के बीच सेतु के तौर पर काम करने के लिए उनकी तारीफ की.
आरएसएस द्वारा साझा किए गए उनके भाषण के अंश के अनुसार, भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार ने इसके स्वयंसेवकों को धर्म की रक्षा के लिए ‘चौकीदारी’ की भूमिका सौंपी है.
हिंदुस्तान के अनुसार, भागवत ने कहा कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है. आने वाले पंद्रह सालों में भारत फिर से अखंड भारत बन जाएगा और यह सब हम अपनी आंखों से यह देखने वाले हैं.
उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद के सपनों के भारत का साकार होने के करीब है. लोगों ने कहा कि इस गति से चले तब इसमें 20-25 साल लग जाएंगे, लेकिन अपने अनुभवों से मुझे लगता है कि यह आठ से 10 साल में साकार हो जाएगा. इसके लिए पूरे समाज को साथ मिलकर काम करना होगा.’
भागवत ने कहा, ‘सब कुछ एक बार में हासिल नहीं किया जाएगा. मेरे पास बिल्कुल भी शक्ति नहीं है. यह लोगों के पास है. उनके पास नियंत्रण है. जब वे तैयार होते हैं, तो सभी का व्यवहार बदल जाता है. हम उन्हें तैयार कर रहे हैं; तुम भी करो. हम बिना किसी डर के एक उदाहरण के तौर पर साथ चलेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘हम अहिंसा की बात करेंगे, लेकिन हम अपने हाथ में छड़ी रखेंगे. हमारे मन में किसी के प्रति शत्रुता नहीं है, लेकिन दुनिया ताकत की भाषा सुनती है. इसलिए, हमारे पास वैसी शक्ति होनी चाहिए, जो दिखाई दे.’
भागवत के अनुसार भारत की प्रगति धर्म की प्रगति के बिना संभव नहीं है. सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है. भारत की प्रगति सुनिश्चित है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘इस भारत के रास्ते में कोई भी खड़ा होगा तो उसे हटा दिया जाएगा या समाप्त कर दिया जाएगा.’
भागवत ने कहा कि हिंदू समाज को संगठित करने के लिए ‘समता’ अनिवार्य पहलू है. उन्होंने कहा कि सामाजिक समता और हिंदू समाज समानार्थक है और उसे (हिंदू समाज) संगठित करने के लिए समता अनिवार्य पहलू है.
उन्होंने कहा कि सत्य, अहिंसा, समता आदि की बात काफी लोग करते हैं, इसके बारे में भाषण देते हैं, लेकिन इसके आधार पर चलने एवं आचरण करने की जरूरत है.
भागवत ने कहा, ‘सत्य, अहिंसा, शांति और समता…ये धर्म के चार स्तंभ हैं. संघ के स्वयंसेवकों का समर्थन हमेशा से ऐसे कार्यो के लिए रहा है.’
उन्होंने कहा कि सत्य एवं करुणा का संबंध मन एवं वाणी की पवित्रता से जुड़ा होता है और इसके लिए तपस्या करनी पड़ती है. उन्होंने कहा कि खुद भी जिएं और दूसरों को भी जीने दें, यह अहिंसा है तथा शांति सभी को चाहिए और उससे समृद्धि आती है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि परिवार से राष्ट्र तक कोई छोटा या बड़ा न हो, इसका नाता समता से है.
उन्होंने कहा, ‘आज 14 अप्रैल को हम जिनका (बीआर आंबेडकर का) जन्मदिवस मना रहे हैं, उनका संबंध भी समानता एवं समता से है और उन्होंने सामाजिक जीवन में विषमता समाप्त करने के लिये योगदान दिया.’
उन्होंने कहा, ‘सामाजिक समता और हिंदू समाज समानार्थक है और इसे (हिंदू समाज को) संगठित करने के लिए समता अनिवार्य पहलू है.’
भागवत ने कहा कि भारत धर्मपरायण देश है, ऐसे में इन चार बातों को ध्यान में रखना चाहिए और इसके अनुरूप आचरण होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसका विरोध करना मनुष्यता के विरुद्ध है.
मालूम हो कि बीते 10 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस के दौरान दक्षिणपंथी समूहों द्वारा कथित तौर पर उकसाए जाने के बाद देश भर के कई राज्यों से सांप्रदायिक हिंसा की खबरें आने के कुछ दिनों बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान आया है.