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 यह मंजिल नहीं, संबल व राह खर्च है : दरिहरे (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Monday , 25 November 2024

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यह मंजिल नहीं, संबल व राह खर्च है : दरिहरे (साक्षात्कार)

पटना, 22 दिसम्बर (आईएएनएस)। मिथिला क्षेत्र की समृद्घ मैथिली भाषा ही बिहार को अमूमन हर साल सर्वोच्च साहित्यिक स्वायत्त संस्था साहित्य अकादमी से पुरस्कार दिलाती रही है। इस बार पुरस्कार के लिए मधुबनी के प्रसिद्घ कथाकार श्याम दरिहरे को चुना गया है।

पटना, 22 दिसम्बर (आईएएनएस)। मिथिला क्षेत्र की समृद्घ मैथिली भाषा ही बिहार को अमूमन हर साल सर्वोच्च साहित्यिक स्वायत्त संस्था साहित्य अकादमी से पुरस्कार दिलाती रही है। इस बार पुरस्कार के लिए मधुबनी के प्रसिद्घ कथाकार श्याम दरिहरे को चुना गया है।

दरिहरे का चयन उनके मैथिली कला संग्रह ‘बड़की काकी हॉट मेल डॉट कॉम’ के लिए किया गया है। दरिहरे कहते हैं कि यह उनकी मंजिल नहीं है, यह तो केवल संबल और राह खर्च है। अभी तो मंजिल बहुत दूर है।

मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड के बरहा गांव के मूल निवासी श्याम दरिहरे ने अकादमी पुरस्कार की घोषणा के बाद आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि आज इतनी तरक्की के बाद भी साहित्य से रोजी-रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाता। खासकर मैथिली भाषा की पुस्तकें मुश्किल से ही बिकती हैं।

बचपन से ही लिखने के शौकीन और साहित्य में रुचि रखने वाले दरिहरे कहते हैं, “जीवन में साहित्य के प्रति रुचि रहने के बावजूद जीवनयापन के लिए पुलिस की नौकरी करनी पड़ी। नागार्जुन और रामकमल चौधरी जैसे बिरले साहित्यकारों को भी क्षेत्रीय भाषा से हटकर हिंदी भाषा की ओर जाना पड़ा।”

62 वर्षीय दरिहरे वर्ष 2014 में डिविजनल कमांडेंट, हजारीबाग ( झारखंड) के पद से अवकाश प्राप्त हुए थे। उन्होंने बताया कि पुलिस में नौकरी करते हुए भी साहित्य में उनकी रुचि कम नहीं हुई। वे कहते हैं कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने ‘बड़की काकी हॉट मेल डॉट कॉम’ लिखा था।

श्याम दरिहरे को इससे पहले ‘किरण कथा सम्मान’ और ‘तिरहुत साहित्य सम्मान’ भी मिल चुका है।

अपने साहित्यिक जीवन के संस्मरणों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “जब गांव में सरस्वती पूजा का आयोजन होता था, तब नाटक का मंचन किया जाता था। इस क्रम में मैंने भी एक नाटक लिखा था। यह अलग बात है कि उसका मंचन नहीं हुआ, परंतु यहीं से मैंने लिखना प्रारंभ कर दिया।”

अपनी प्रस्तुत पुस्तक की बाबत कहा कि इसकी पहली कहानी वर्ष 1994 में प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह में कुल 18 कहानियां हैं, जिसमें सभी अलग-अलग मूड की हैं।

इसके अलावा मैथिली में उनके कथा संग्रह ‘सरिसों में भूत’, उपन्यास ‘घुरि आउ मान्या’, कविता संग्रह ‘क्षमा करब हे महाकवि’ सहित धर्मवीर भारती के प्रसिद्घ कविता संग्रह ‘कनुप्रिया’ का मैथिली अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने हिन्दी में एक पुस्तक ‘नहाना अभी बाकी’ लिखी है।

मैथिली भाषा के विषय में पूछने पर दरिहरे कहते हैं, “कई प्रमुख परीक्षाओं में मैथिली भाषा के प्रवेश के बाद युवाओं की इस भाषा के प्रति रुचि बढ़ी है, परंतु अभी मैथिली साहित्य को विश्व साहित्य के स्तर तक ले जाना संभव नहीं हो पाया है।”

बकौल दरिहरे, “मैंने तो मैथिली भाषा मां की गोद से सिखी है। मैं इस भाषा का कृतज्ञ हूं। मेरे लिए यह भाषा नहीं, मेरा साहित्यिक सफर है। यही काराण है कि मेरी कहानियों में परंपरा, साहित्य, संस्कृति के साथ आधुनिकता, नवीनतम तकनीक से मैथिली के जुड़ने की कहानी भी होती है।”

वह कहते हैं, “किसी भी लेखक के लिए उसकी सभी रचनाएं प्रिय होती हैं, लेकिन यह पाठक को तय करना होता है कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी लगती है।”

बहरहाल, साहित्य अकादमी द्वारा उनकी पुस्तक कथा संग्रह ‘बड़की एट काकी हॉटमेल डॉटकम’ के लिए पुरस्कार देने की घोषणा के बाद प्रसन्न दरिहरे अपनी भाषा में कहते हैं, “नीक लागल काज के मान्यता, सम्मान भेटल।”

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