यंगून, 17 मार्च (आईएएनएस)। म्यांमार सरकार के शांति वार्ताकारों ने मंगलवार को कहा कि जातीय सशस्त्र गुटों के साथ बहाल हुई शांतिवार्ता के जरिए देशव्यापी संघर्षविराम समझौते का मसौदा तैयार करने की कोशिश की जाएगी। वार्ताकारों ने लंबित मुद्दों को सुलझाने का भी आह्वान किया।
समाचार एजेंसी ‘सिन्हुआ’ के मुताबिक, सरकार की युनियन पीस-मेकिंग वर्क कमेटी (यूपीडब्लूसी) के उपाध्यक्ष यू आंग मिन ने म्यांमार शांति केंद्र में यूपीडब्लूसी और 16 जातीय सशस्त्र गुटों के नेशनवाइड सीजफायर कोऑर्डिनेशन टीम (एनसीसीटी) के बीच चल रही सातवें दौर की शांतिवार्ता के उद्घाटन के अवसर पर यह बात कही।
यू आंग मिन राष्ट्रपति के कार्यालय में मंत्री भी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार संघर्षविराम समझौते को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रयासरत है। इसका उद्देश्य सरकार के अगले कार्यकाल में भी शांति प्रक्रिया को बनाए रखना है ।
उन्होंने राष्ट्रपति यू थेन सेन का हवाला देते हए कहा कि जातीय संघर्षो को ताकत के बल पर सुलझाया नहीं जा सकता। इसे राजनीतिक बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि संघर्षविराम पर एक संयुक्त निगरानी समिति की स्थापना और राजनीतिक संवाद के लिए एक अलग समिति की स्थापना शांति प्रक्रिया की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
एनसीसीटी के अध्यक्ष यू नैंग हान था ने कहा कि उत्तरी म्यांमार में भारी संघर्ष के बीच हाल ही में सरकार और सैन्य प्रमुखों के साथ कचिन इनडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन (केआईओ) की बैठक शांति प्रक्रिया की दिशा में एक अच्छी संभावना थी। उन दोनों के बीच विश्वास बहाली से भी यूपीडब्लूसी और एनसीसीटी के बीच देशव्यापी संघर्षविराम वार्ता में योगदान मिलेगा।
उन्होंने सुझाव दिया कि स्थायी शांति के लिए कचिन राज्य, तांग या पालौंग क्षेत्र और कोकांग में जारी संघर्ष को शांति वार्ता में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उन इलाकों में तनाव घट सके।
उन्होंने घरेलू झगड़ों को सुलझाने के लिए बल का प्रयोग नहीं करने पर जोर दिया। क्योंकि इससे देश में अराजकता बढ़ सकती है।
सेना के नंबर-1 विशेष अभियान से जुड़े लेफ्टिनेंट जनरल मिंत सो ने विश्वास व्यक्त किया कि यदि बैठक के दौरान सशस्त्र बलों और केआईओ के बीच विवाद सुलझाने और संघर्षविराम पर आपसी सहमति बनी तो शांति हासिल की जा सकती है।
गौरतलब है कि सरकार और जातीय सशस्त्र समूहों के बीच मंगलवार को यंगून में शांतिवार्ता बहाल हो गई, जो संघर्षविराम समझौते के मसौदे को अंतिम रूप देने की दिशा में एक प्रयास है।