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मौत से जिंदगी छीन ली थी एम.सी. दीक्षित ने

वृद्धावस्था में गजब की स्फूर्ति एवं पुरानी यादों से ओत-प्रोत, सीने तक लंबी दाढ़ी वाले एम.सी. दीक्षित के विषय में पूछने पर पता चला कि 60 साल पहले उन्होंने मौत से जिंदगी छीन ली थी।

एयर इंडिया के चार्टर्ड विमान कश्मीर प्रिंसेस से जुड़ी पूर्व नियोजित विमान दुर्घटना में निशाने पर चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई थे, लेकिन चाऊ उस विमान में सवार ही नहीं हुए। उस विमान हादसे में 16 लोग मारे गए थे। दुर्घटना में बचे तीन लोगों में दीक्षित भी एक थे। दीक्षित ऐसे पहले असैनिक थे, जिन्हें उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। उनका मानना है कि स्वयं ईश्वर ने उनकी जान बचाई।

एयर इंडिया का यह विमान 11 अप्रैल 1955 को बम विस्फोट के बाद दक्षिण चीन सागर में गिर गया था। चीन की आधिकारिक न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, 2004 में चीन में कश्मीर प्रिंसेस से जुड़ी राजनीतिक फाइल में गोपनीयता का पर्दा उठाया गया, जिससे पता चला कि चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ ही इस हमले का निशाना थे, लेकिन वह उस विमान पर सवार ही नहीं हुए थे।

दीक्षित ने बताया, “देश की आजादी से पहले दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने वाला था। वह उस समय वकील थे। बाद में उन्होंने वायुसेना में बतौर फाइटर पायलट काम संभाला। 15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तो वह एक निजी विमानन कंपनी में नौकरी करने लगे। बाद में उनका संस्थान एयर इंडिया बन गया। बाडूंग की उड़ान बतौर सहायक पायलट उनकी आखिरी उड़ान थी। इसके बाद उनका कप्तान बनना तय था।”

उन्होंने बताया, “11 अप्रैल, 1955 को हांगकांग से उड़ान भरी। हमें उड़ान भरे करीब पांच घंटे हुए थे, तभी हमें विस्फोट की आवाज सुनाई दी। हम कुछ संभलते तब तक विमान के तीसरे इंजन में आग लग गई। धुआं केबिन में फैलने लगा। हमने तीन आपातकालीन संदेश भी दिए और उसके बाद हमारा संदेश वाहक सिस्टम बंद हो गया। कुछ ही देर में हमने स्वयं को समुद्र में पाया।”

दीक्षित ने बताया, “किसी तरह हम समुद्र की सतह पर पहुंचे। हमें अपनी मौत तय लग रही थी। तभी हमें आसपास ग्राउंड मेंटीनेंस इंजीनियर अनंत कार्णिक और एक नैवीगेटर(संचालक) जगदीश पाठक को पाया तो कुछ हिम्मत बढ़ी। हम करीब 12 घंटे तक किसी तरह समुद्र में एक दिशा में तैरते रहे। पानी ठंडा नहीं था, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात थी। सुबह-सुबह कुछ इंडोनेशियाई मछुआरों की हम पर नजर पड़ी। उन्होंने न केवल हमें बचाया, बल्कि खाना भी खिलाया। पहनने को कपड़े दिए और हमारे शीर्ष अधिकारियों तक संदेश भी भेजा। बाद में हमें एक ब्रिटिश फ्रिगेट ने वहां से निकाला और हांगकांग ले जाकर सिंगापुर के अस्पताल में भर्ती कराया।”

उन्होंने आगे बताया, “हमारी हंसली टूट गई थी, इसलिए भारत लौटने के बाद विमान उड़ाने के लायक नहीं रहे। स्वदेश लौटने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कोई मांग पूरी करने की इच्छा जाहिर की तो दीक्षित ने इंडोनेशियाई मछुआरों को भारतीय दूतावास के माध्यम से सम्मानित करने की इच्छा जाहिर की। नेहरू ने उनकी बात का मान रखा।”

बकौल दीक्षित, “हमें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। हम तब संभवत: पहले असैनिक थे, जिन्हें अशोक चक्र मिला।”

बाद में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जांबिया में सिविल एविएशन में भारत का प्रतिनिधि बनाकर भेजा। दीक्षित के बड़े भाई जगदीशचंद्र दीक्षित रायपुर के रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं।

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