नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। मोहाली ने वाकई किया अजूबा। एक ऐसी पिच जो कभी देश में सबसे तेज करार दी जाती थी, अपने क्यूरेटर दलजीत सिंह की कारीगरी से किस कदर स्पिनर्स की चेरी बनी कि इस विभाग में परंपरागत महारत प्राप्त भारत ने महाबली दक्षिण अफ्रीका को तीन दिन से भी कम समय में हराया ही नही, निचोड़ कर रख दिया। ऐसे कम रन संख्या वाले टेस्ट मुकाबले में 108 रन की भारी अंतर से जीत को आप और क्या कहेंगे भी?
नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। मोहाली ने वाकई किया अजूबा। एक ऐसी पिच जो कभी देश में सबसे तेज करार दी जाती थी, अपने क्यूरेटर दलजीत सिंह की कारीगरी से किस कदर स्पिनर्स की चेरी बनी कि इस विभाग में परंपरागत महारत प्राप्त भारत ने महाबली दक्षिण अफ्रीका को तीन दिन से भी कम समय में हराया ही नही, निचोड़ कर रख दिया। ऐसे कम रन संख्या वाले टेस्ट मुकाबले में 108 रन की भारी अंतर से जीत को आप और क्या कहेंगे भी?
एक ऐसा टेस्ट जिसमें अधिकतम स्कोर 201 रहा हो, वहां जाहिर है कि बल्लेबाजी अधिकांश अवधि में सहमी-सहमी और काफी कुछ अंशों तक खौफजदा भी रही। तूती बोलती रही स्पिनर्स की जिसमें भारतीय अंत में इक्कीस ठहरे। वरुण एरोन को एकमात्र सफलता मिली अन्यथा तो शेष सभी स्पिन त्रिगुट के हाथ लगे।
दो राय नहीं कि रवींद्र जडेजा ने बतौर सुधरे गेंदबाज टीम में धमाकेदार वापसी से मेरे जैसे आलोचक को भी खामोश कर दिया। रविचंद्रन आश्विन के साथ मैच में आठ-आठ विकेट बांटने वाले जडेजा को ही पहली पारी में बेशकीमती 38 रन की बदौलत मैन आफ द मैच चुना जाना तय था। सबसे खास बात जो मैने देखी, वह यह कि चालू सत्र में लगातार छह बार पाली में पांच विकेट रणजी मैचों में लेकर उन्होंने टीम में यूं ही वापसी नहीं की थी।
अपनी गेंदबाजी पर जडेजा ने खासा काम भी किया था और वह यहां वाकई मैजिक टच में नजर आए। गेंद को हवा में थोड़ा धीमा छोड़ने से लूप बनने लगा और उनकी गेंदों को भांपना कि यह लेग ब्रेक है कि आर्मर कितना दुष्कर था, यह मेहमान बल्लेबाजों से तो पूछ कर देखिए कि जिन्होंने स्ट्रोक न लेने की सजा भुगती और आउट होकर पैवेलियन लौटते रहे।
जहां तक आश्विन की बात है तो देखिए न, हम कितनी जल्दी चीजों को भुला देते हैं। यही गेंदबाज याद कीजिए कि विश्व कप के पहले तक एक तन मन से टूटा ऐसा आफ स्पिनर था जिसकी टीम में जगह तक नहीं बनती थी। राउंड द विकेट आकर मिडिल-लेग स्टम्प पर गेंद डालना और बल्लेबाज की गलतियों के सहारे रहना ही आश्विन की नियति बन चुका था और हर कोई हैरत में तब था कि क्या हो गया उनको, कहां गुम हो गयी उनकी विविधता?
मगर विश्वकप से ऐन पहले अफगानिस्तान के साथ खेले अंतिम अभ्यास मैच में हमने उनको एक शास्त्रीय आफ स्पिनर के रूप में एक बार फिर से पा लिया जो आफ स्टम्प की लाइन पकड़ कर ओवर द विकेट गेंदबाजी से बल्लेबाजों को बैक फुट पर लाने में सफल हो चुका था। उसके बाद चेन्नई के इस धुरंधर नें मुड़ कर नहीं देखा और भारतीय गेंदबाजी की ‘जान’ बन गया।
गुगली पंडित अमित मिश्रा भी अपने दोनो साथियों से बहुत पीछे नहीं रहे। हालांकि उन्हें सफलताएं तो तीन ही मिलीं पर उनमें दो उस डीविलियर्स की थीं जो सम्प्रति दुनिया के निर्विवाद नंबर एक बल्लेबाज हैं और जिनके पहली पारी में 63 रनों नें टीम को भारतीयों के स्कोर के करीब पहुंचाया था, हम यह न भूलें। दोनों बार अमित ने उनके डंडे बिखेरे।
क्रिकेट एक ऐसा खेल है कि आप एक ही लकीर पर इसमें नहीं चल सकते। खास कर टेस्ट मैचों में कप्तान सुबह की नमी और वातावरण का लाभ उठाने के लिए पेस पर ज्यादा भरोसा करता है। यहां कप्तान कितना कल्पनाशील है, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है। कोहली हों या हाशिम अमला दोनो ही कप्तानों ने पिच के मद्देनजर अपना लह शुरूआती आक्रमण नहीं रखा।
जिसके चलते आप देखिए कि पहले घंटे में हर दिन बल्लेबाजी चढ़ी दिखी। जैसे ही होश आया दोनो कप्तानों को और स्पिनर मोर्चे पर डटे कि बल्लेबाजी करने वाली टीम का काम लग गया। कप्तानी सतत सीखने की प्रक्रिया का दूसरा नाम है और कोहली ने यहां उस गलती से सबक लिया, यह आज दूसरी पारी में दिखा जब जडेजा और आश्विन ने नई गेंद के साथ शुरूआत की और सफलता ने कैसे कदम चूमें, यह भी भला क्या बताना पड़ेगा ?
यहां भी देखिए कि जिसने भी गेद के बल्ले पर आने का इंतजार करने के अलावा स्पिनर्स पर पांवों का चपल प्रयोग किया, उसके बल्ले से रन निकले और चेतेश्वर पुजारा रहे हों या मुरली विजय, दोनो ही इसके बेहतरीन उदाहरण थे, यह आपको स्वीकार करना ही होगा।
कुल मिला कर विराट कोहली का दल अब बढ़े मनोबल के साथ चिन्नास्वामी स्टेडियम में मेहमानों से दो-दो हाथ करने उतरेगा। पिच का चरित्र भी मोहाली से इतर होने वाला नहीं, इसलिए यह कहने में गुरेज नहीं कि मेहमानों की पिछले नौ वर्षों से विदेशी धरती पर अपराजेयता यहां टूटती है तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार, समीक्षक हैं)