नई दिल्ली: श्रीलंका के बिजली प्राधिकरण के प्रमुख ने एक संसदीय पैनल के सामने गवाही दी है कि उन्हें श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने उन्हें बताया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 मेगावॉट की पवन ऊर्जा (विंड पावर) परियोजना को सीधे अडानी समूह को देने पर जोर दिया था.
रिपोर्ट के अनुसार, इस दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए राजपक्षे ने किसी इकाई विशेष को प्रोजेक्ट देने की बात से इनकार किया. वहीं ये सनसनीखेज दावा करने के दो दिन बाद बिजली प्राधिकरण के प्रमुख ने यू-टर्न ले लिया. उन्होंने कहा कि ‘भावनाओं’ में बहकर उन्होंने ‘झूठ’ बोला था.
सार्वजनिक उद्यमों की संसदीय समिति (सीओपीई) की एक सुनवाई में सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के अध्यक्ष एमएमसी फर्डिनेंडो ने कहा कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने उनसे कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री अडानी समूह को 500 मेगावाट का पवन ऊर्जा संयंत्र देने पर जोर दे रहे हैं.
श्रीलंकाई चैनल न्यूज़फर्स्ट द्वारा साझा किए गए उनकी गवाही के एक वीडियो क्लिप के अनुसार, फर्डिनेंडो कहते हैं, ’24 नवंबर, 2021 को एक बैठक के बाद राष्ट्रपति ने मुझे बुलाया और कहा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन पर अडानी समूह को परियोजना सौंपने के लिए दबाव बना रहे हैं.’
वे समिति की अध्यक्ष और एक अन्य सदस्य द्वारा पूछे गए उन सवालों का जवाब दे रहे थे कि जिसमें पूछा गया था कि श्रीलंका के उत्तरी तट पर 500 मेगावाट का पवन ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए अडानी समूह को कैसे चुना गया.
फर्डिनेंडो ने समिति को बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति को सूचित किया कि मामला सीईबी से संबंधित नहीं है, बल्कि निवेश बोर्ड से संबंधित है.
फर्डिनेंडो ने कहा, ‘उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं इसे देखूं. तब मैंने एक पत्र भेजा जिसमें ये जिक्र किया गया था कि राष्ट्रपति ने मुझे निर्देश दिया है और वित्त सचिव को ऐसा करना चाहिए. मैंने बताया कि यह एक सरकार का दूसरी सरकार से सौदा (government-to-government deal) है.’
सुनवाई के दौरान पैनल की अध्यक्ष चरिता हेरथ ने पूछा कि क्या पवन ऊर्जा सौदे को ‘अवांछित’ माना जा सकता. इसके जवाब में फर्डिनेंडो ने कहा, ‘हां, ये गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील है, लेकिन कानून में दर्ज न्यूनतम लागत नीति के अनुसार बातचीत होनी चाहिए.’
इसके एक दिन बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने उनके जवाब के उलट जाते हुए ऐसी कोई बात कहने से इनकार कर दिया.
उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि वे मन्नार में एक पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट संबंधी सुनवाई में सीईबी के अध्यक्ष द्वारा दिए गए बयान से इनकार करते हैं. उन्होंने परियोजना को किसी विशिष्ट व्यक्ति या इकाई को देने को नहीं कहा था.
इसके बाद फर्डिनेंडो ने न्यूज़फर्स्ट से कहा कि उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया है. चैनल के अनुसार, सीईबी प्रमुख को ‘शनिवार (11 जून) की सुबह एक मंत्री द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर यह एहसास हुआ कि उन्होंने गलती से ऐसा बयान दे दिया.’
शुक्रवार को सार्वजनिक सुनवाई हुई थी, जिससे एक दिन पहले संसद ने प्रतिस्पर्धी बोली लगाने के नियम को हटाने के लिए 1989 के इलेक्ट्रिसिटी कानून में संशोधन किया था. प्रमुख विपक्षी दल समागी जना बालवेगया (एसजेबी) ने आरोप लगाया कि कानून में संशोधन की प्रमुख वजह अडाणी समूह के साथ हुआ ‘अवांछित’ सौदा है. एसजेबी ने मांग की है कि 10 मेगावाट क्षमता से अधिक की परियोजनाओं के लिए प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया होनी चाहिए.
श्रीलंका की संसद में कुल 225 सदस्य हैं. बिजली विधेयक पर संशोधन के पक्ष में 120 मत पड़े. इसके विरोध में 36 वोट पड़े और 13 सांसदों ने वोटिंग में भाग नहीं लिया.
कर्मचारी यूनियन का विरोध
इस विधेयक का सीईबी की ट्रेड यूनियनों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है. सीईबी के इंजीनियरों ने चेतावनी दी है कि यदि ये संशोधन कानून में बदलते हैं वे हड़ताल पर चले जाएंगे.
इससे पहले बीते सप्ताह सीईबी इंजीनियर्स यूनियन (सीईबीईयू) ने दावा किया था कि अडानी समूह ने पहले सीईबी को 6.50 अमेरिकी सेंट प्रति यूनिट पर बिजली बेचने का प्रस्ताव दिया था. सीईबी इंजीनियर्स यूनियन के अध्यक्ष अनिल रंजीत ने 6 जून को संवाददाताओं से कहा, ‘अब 7.55 सेंट प्रति यूनिट में प्रोजेक्ट देने का प्रयास किया जा रहा है.’
श्रीलंकाई मीडिया समूह इकोनॉमीनेक्स्ट के मुताबिक, सीईबीईयू के पूर्व अध्यक्ष सौम्य कुमारवाडु ने कहा कि प्रतिस्पर्धी निविदा के तहत 4 सेंट प्रति यूनिट या उससे कम दर पर बिजली बेचने के लिए एक विंड प्लांट बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘7.55 सेंट इससे लगभग दोगुना है. 25 सालों की अवधि में देखें तो यह चार बिलियन डॉलर के करीब ठहरता है.’
उल्लेखनीय है कि गौतम अडानी ने अक्टूबर 2021 में श्रीलंका का दौरा किया और राष्ट्रपति राजपक्षे के साथ अपनी बैठक के बारे में ट्वीट करते हुए कहा था कि वह बंदरगाह परियोजना के अलावा ‘अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर साझेदारी’ के बारे में भी सोच रहे हैं.
जहां फर्डिनेंडो ने सीओपीई को बताया कि राष्ट्रपति राजपक्षे ने उन्हें नवंबर 2021 में अडानी को परियोजना देने की मोदी की मांग के बारे में बताया था, वहीं मन्नार और पूनरिन में दो अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) परियोजनाओं को स्थापित करने का समझौता इस साल मार्च में ही सामने आया है.
तब भी, विपक्ष ने अडानी को प्रोजेक्ट सौंपे जाने को लेकर चिंता जताई थी. द हिंदू में प्रकाशित एक ख़बर में एसजेबी के मुख्य कार्यकारी अजित पी. परेरा के हवाले से कहा गया था, ‘यह बेहद अफसोस की बात है कि अडानी समूह ने श्रीलंका में प्रवेश करने के लिए पिछले दरवाजे को चुना है. प्रतिस्पर्धा से बचने को सही नजर से नहीं देखा जाता. यह हमारी पस्त अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है, भुगतान संबंधी मसलों को बढ़ाता है और हमारे नागरिकों के लिए और दुख की वजह बनता है.’
यह पहली बार नहीं है जब श्रीलंका में अडानी समूह को लेकर सवाल उठ रहे हैं. इससे पहले श्रीलंका ने बार-बार इस भारतीय समूह को कोलंबो बंदरगाह पर वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (डब्ल्यूसीटी) परियोजना के लिए भारत सरकार का ‘नॉमिनी’ बताया था. तब भारत सरकार ने इस बात से इनकार किया कि उसने इस प्रोजेक्ट के लिए किसी कंपनी को नामित किया है. बाद में अडानी समूह ने सितंबर 2021 में डब्ल्यूसीटी के लिए बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर (बीओटी) समझौता किया था.
हिंद महासागर स्थित यह द्वीप एक स्वतंत्र देश के रूप में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है. विदेशी मुद्रा कोष खाली होने के कारण श्रीलंका पहले ही अपने संप्रभु ऋण चुकाने में असमर्थ रहा है.
पिछले कुछ महीनों में भारत ने श्रीलंका की ईंधन और भोजन की तत्काल जरूरतों के लिए मदद की है. अब तक भारत आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए ऋण के बतौर 3.5 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दे चुका है.