वाराणसी, 20 मई (आईएएनएस)। गंगा को अविरल व निर्मल करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से ‘नमामि गंगे’ योजना चलाई जा रही है। प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का असर उनके ही संसदीय क्षेत्र वाराणसी में नहीं दिखाई दे रहा है। शोध करने वालों का कहना है कि काशी में अस्सी घाट और उसके आसपास गंगा बहुत अधिक प्रदूषित हो चुकी है।
शोधार्थियों के मुताबिक पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। मनुष्यों के अलावा जलीय जीवों के लिए भी यह पानी घातक साबित हो रहा है। इसका बड़ा कारण अस्सी नाला है जिससे हर रोज बेहिसाब गंदगी गंगा में प्रवाहित होती है।
यह निष्कर्ष धनबाद आईआईटी के छात्रों के एक दल का है जिसने आठ से 20 मई तक सामने घाट से अस्सी घाट के बीच विभिन्न स्थानों पर गंगाजल का परीक्षण किया।
मालवीय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फ ॉर गंगा मैनेजमेंट से जुड़े छात्रों ने नदी विज्ञानी प्रो़ यू.के.चौधरी और आईआईटी बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के हेड प्रो़ पी.के. सिंह की अगुवाई में वाराणसी में कई जगहों पर गंगा में फैल रहे प्रदूषण की जांच की थी।
छात्रों ने बताया कि उन्होंने सामने घाट, रविदास घाट, अस्सी नाला, अस्सी घाट और पीपा पुल के पास गंगा जल के विभिन्न स्तरों पर परीक्षण किए।
छात्रों के मुताबिक, “अस्सी नाले से 55़3 एमएलडी (दस लाख लीटर प्रति दिन) गंदगी गंगा में प्रवाहित होती है। यह केंद्र सरकार के मानक 12 एमएलडी से कहीं अधिक है। अस्सी नाले में अक्सीजन का स्तर शून्य है। अस्सी घाट पर 543 एमएलडी गंदगी गंगा में प्रवाहित होती है, जबकि यह 8 होनी चाहिए। अस्सी घाट से पांच मीटर की दूरी तक प्रदूषण स्तर अधिक है। इस वजह से गंगा के उस पार मरी हुई मछलियां मिल रहीं हैं।”
प्रो़ यू.के.चौधरी छात्रों के निष्कर्षो को गंभीर चेतावनी मानते हैं। उन्होंने बताया कि अस्सी नाले का रास्ता बदला जाना गलत है। यहां गंगा में 90 डिग्री पर पानी गिर रहा है। इसके एक तरफ से गंदा पानी आ रहा है और दूसरी ओर से गंगा जल। इससे यहां एक विलगाव का क्षेत्र बन गया है जो प्रदूषण बढ़ा रहा है।
छात्रों की टीम में बीटेक द्वितीय वर्ष के अजीत कुमार सिंह, अंकित आनंद, हिमांशु मिश्र, आनंद कुमार गुप्ता, मधु गर्ग और निधि झा शामिल थे। छात्रों ने बताया कि वे अपनी सर्वेक्षण रपट केंद्र सरकार और आईआईटी बीएचयू को देंगे ताकि प्रदूषण कम करने के लिए कदम उठाया जा सके।