नई दिल्ली, 30 अप्रैल (आईएएनएस)। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पिछली सरकार की अपेक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति कहीं अधिक ‘मजबूत’ और ‘प्रगतिशील’ है, वह पिछले 11 महीनों में 16 देशों की यात्राएं कर चुके हैं, लेकिन विदेश नीति और रक्षा मामलों में जमीनी स्तर पर और बेहतर समावेशन की जरूरत है।
‘प्रधानमंत्री की तीन देशों की यात्रा की समीक्षा’ शीर्षक से आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि नरेंद्र मोदी की विदेश नीति मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की विदेश नीति का ही अगला चरण है, लेकिन मौजूदा सरकार ने इसे एक नई ऊर्जा और प्रगतिशील रूप प्रदान किया है।
पूर्व भारतीय राजदूत जयंत प्रसाद ने बुधवार को इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में कहा, “मोदी भारत को एक संतुलनकारी ताकत के रूप में नहीं बल्कि संभावित नेतृत्वकारी शक्ति के रूप में देख रहे हैं। लेकिन वह इसमें सफल हो पाते हैं या नहीं, यह जमीनी स्तर मिलने वाली सफलता पर निर्भर करेगा।”
प्रधानमंत्री हाल ही में फ्रांस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा से लौटे हैं।
प्रसाद ने कहा कि भारत को यूरोपीय संघ के साथ और अधिक संबंध स्थापित करना चाहिए तथा “यह समूह भारत को समर्थन देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं और निभाते आए हैं।”
28 यूरोपीय देशों के संघ यूरोपियन यूनियन (ईयू) के मुख्यालय ब्रसेल्स का मोदी का प्रस्तावित दौरा तारीखों पर तालमेल न बैठ पाने के कारण रद्द हो गया। इसके पीछे दो नौसैनिकों से जुड़े मामले में इटली के साथ चल रहे गतिरोध को वजह माना जा रहा है।
भारतीय नौसेना के पूर्व सेनापति एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा भारत दुनिया में सर्वाधिक हथियार खरीदने वाले देशों में शामिल है, जबकि चीन हमारी तुलना में आज दुनिया के कुछ सबसे बड़े हथियार निर्यातक देशों में है।
एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा, “नेताओं ने मौका गंवा दिया है। अगर आप हथियारों के लिए आयात पर निर्भर हैं तो खुद को क्षेत्र में नेतृत्वकारी शक्ति नहीं मान सकते।”
प्रकाश ने साथ यह भी कहा कि रक्षा करारों को राजनीतिक दल ‘सुनहरे मौके’ के रूप में लेती हैं और इसे ‘राजनीतिक मदद जुटाने के स्रोत’ के रूप में देखती हैं।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सी. उदय भास्कर ने इस अवसर पर कहा कि विदेश नीति और रक्षा मामलों में बेहतर समन्वय स्थापित करने की जरूरत है तथा सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और शीर्ष नेताओं तथा नीति निर्माताओं के बीच वार्तालाप को बेहतर किया जाना चाहिए।
समाचार पत्र ‘द हिंदू’ की कूटनीतिक एवं रणनीतिक मामलों की संपादक सुहासिनी हैदर ने कहा कि मोदी के इन भारत दौरों में कुछ ‘चौंकाने’ और ‘धाक’ जमाने वाली बातें जरूर रही हैं, लेकिन ‘ये चीजें लगातार अपना प्रभाव कायम रख पाएंगी’ इसमें संदेह है।
सुहासिनी ने कहा कि कनाडा के साथ यूरेनियम समझौता काफी समय से अधर में लटका पड़ा है। सुहासिनी ने इस करार को ‘पूरी तरह पारदर्शी’ बताया और कहा कि इसके लिए जवाबदेही या निगरानी की कोई जरूरत नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी में 2006 में हुए हनोवर मेले के दौरान साझेदार देश के रूप में भारत में 1.6 अरब डॉलर का निवेश हुआ था, जबकि इस बार अप्रैल में इसी समारोह में अब तक भारत मात्र एक करोड़ डॉलर का निवेश हासिल कर सका है।