मयंक प्रताप सिंह (दिल्ली )-मोदी अपने अनशन का आगाज कर चुके हैं। गुजरात विश्वविद्यालय के एक एसी हॉल में उन्होंने अपने अनशन का श्रीगणेश किया। दिन भर की आपाधापी और लोगों का अभिवादन वो स्टेज पर बैठकर वो स्वीकार करते रहे। अपना अनशन शुरू करने से पहले उन्होंने ना जाने कितने ही साधू संतों और संतो संन्यासियों का आशीरवाद भी लिया जिसका हम सबने टीवी पर लाइव कवरेज देखा।
दिन भर तो मोदी कुछ नहीं बोले लेकिन जब रात हुई तो अचानक गुजरात के मुख्यमंत्री को याद आया कि वो आज अपना ज्ञान किसी से बांट ही नहीं पाए.. जबकि वो सबका ही सुनते रहे। सो रात में अचानक हर चैनल वालों को अपने पास बुलाया और कुछ खास लोगों को इंटरव्यू देना शुरू किया। इंटरव्यू भी ऐसा कि आपको देखकर हंसी ही आएगी (अगर आप मोदी के विरोधी है। समर्थक भी होंगे तो आपको अचरज होगा कि मोदी काफी सौम्य थे.. यदि समालोचक हैं तो आपको निराशा ही हाथ लगी होगी) आज तक और स्टार न्यूज से लेकर सभी चैनलों पर नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू चला… इंटरव्यू देखकर लगा सारे बटरिंग करने वाले ही रहे… एक बात तो समझ में नहीं आई.. क्या सभी लोग वहां टेलर्ड इंटर्व्यू करने गए थे जिसमें मोदी ने पहले से ताकीद की थी कि उनसे वही सवाल पूछे जाए जिसपर वो सहज थे या फिर लोगों को भय था कि गुजरात में रहकर मोदी से कैसे तीखे सवाल किए जाए (पानी में रहकर मगर से बैर करने वाली बात तो आपको याद होगी ही)…. तो क्या ये मान लिया जाए कि मोदी जी कड़वे सवालों से डर गए या फिर… खैर छोड़िए। वैसे भी नरेंद्र मोदी कहते फिरते हैं वो ही पूरे गुजरात में असली मर्द हैं क्योंकि उनके पास 56 इंच का सीना है… मोदी जी आपके समर्थको से तो आपका बंद हॉल भी पूरा ना भर सका.. हां ये जरूर था कि आपका मंच पूरी तरह से गुंजायमान रहा। बड़े चेहरों से लेकर हर वो आदमी वहां पहुंच रहा था जो नरेंद्र बाई मोदी के पैर छू रहा हो.. यहां तक कि आसाराम बापू भी मंच पर नजर आए साथ ही वहां पर आडवाणी भी काफी दिनों बाद किसी मंच पर माइक हात में लेकर खड़े नजर आए… रिपोर्टरों की आपादापी यहीं नजर नहीं आई.. ना ही कोई चैनल किसी आम पब्लिक से बात करते नजर आया… बात भी किससे करता .. वहां तो सभी कास ही लोग मौजूद ते.. जैसे किसी पॉलिटिकल पार्टी की रैली हो जैसा नजारा रहा। एक बार और थी कि रामदेव के जैसे उन्होंने भी मल्टीकैम सेटअप लगाया हुआ था। एसी और लाइटिंग की पर्याप्त व्यवस्था थी। वहीं दूसरी तरफ शंकर सिंह वाघेला का डेरा भी खाली ही रहा… मोदी के साथ तो बीजेपी के नेता खड़े नजर आए लेकिन वागेला में इतना भी गरज नहीं था वो किसी दोयम दर्जे के कांग्रेसी को अपने साथ खड़ा कर पाते.. ठीक ही है। जिस पार्टी में सिर्फ एक परिवार की तूती बोलती हो वहां पर किसी और को नेता संबोधित करते हुए भी मुजे डर ही रगता है। आपको याद होगा कि राहुल की पदयात्रा के समय हर जगह से हर कांग्रेस कुकुरमुत्ते की तरह खड़ा होकर कुछ ना कुछ बोलवचन कर रहा था। लेकिन वाघेला के मंच से आवाजे थीं पर केवल लाउडस्पीकर की।
सोचा था कि गुजरात में जो मोदी के जादू के बारे में जो सुना था वो मोदी का जादू दिखेगा… पर यहां तो रामदेव भी मोदी और वाघेला से बीस ही साबित हुए..कम से कम रामदेव की फैन फॉलिविंग मोदी से ज्यादा दिखी थी मुझे रामलीला मैदान में.. अन्ना के आंदोलन की तो बात ही और थी… पिछले कुछ महीनों में मैं ये चौथा अनशन देख रहा हूं जो कि मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है… लेकिन इन चारों में सबसे थका हुआ(मेरे कुछ संघी दोस्तों को बुरा लग सकता है) अनशन रहा।
खैर जो भी हो ये मेरी निजी राय है.. अगर आप इत्तेफाक ना रखते तो आपके सुझाव प्रार्थनीय हैं..ताकि मैं सिक्के के उस पहलू को भी देख सकूं जो आप मुझे दिखाना चाहते हैं।