नई दिल्ली, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। बैंकॉक में खेली गई एशियन चैम्पियनशिप में 81 किलोग्राम भारवर्ग में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली महिला मुक्केबाज पूजा रानी अपनी सफलता से काफी खुश हैं। पूजा पहली बार 81 किलोग्राम भारवर्ग में खेल रही थी और पहली बार ही उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोह मनवाते हुए फाइनल में विश्व चैम्पियन को मात दी और स्वर्ण पर कब्जा किया।
नई दिल्ली, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। बैंकॉक में खेली गई एशियन चैम्पियनशिप में 81 किलोग्राम भारवर्ग में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाली महिला मुक्केबाज पूजा रानी अपनी सफलता से काफी खुश हैं। पूजा पहली बार 81 किलोग्राम भारवर्ग में खेल रही थी और पहली बार ही उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोह मनवाते हुए फाइनल में विश्व चैम्पियन को मात दी और स्वर्ण पर कब्जा किया।
पूजा ने यह भारवर्ग अपनी मर्जी से नहीं चुना था। वह अमूमन 75 किलोग्राम भारवर्ग में खेलती थीं, लेकिन परिस्थिति ऐसी आन पड़ी की उन्हें 81 किलोग्राम में आना पड़ा।
पूजा तकरीबन डेढ़ साल हाथ जलने और कंधे की चोट के कारण घर पर रहीं और इस कारण उनका वजन बढ़ गया। इसलिए उन्हें 81 किलोग्राम भारवर्ग में खेलना पड़ा।
पूजा ने आईएएनएस से फोन पर साक्षात्कार में कहा, “महिलाओं में एक ही स्वर्ण पदक आया है। दूसरा यह भी है कि 81 किलोग्राम में भी एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण भी पहली बार आया है। मैंने इससे पहले रजत और कांस्य पदक जीते थे और अब स्वर्ण जीतना मेरे लिए सुखद अहसास है।”
उन्होंने कहा, “मेरा वजन बढ़ गया था, पहले दीवली में पटाखे फोड़ते हुए मेरा हाथ जल गया था और फिर मेरे कंधे में चोट लग गई थी। इस दौरान में घर में बैठी रही थी तो मेरा वजन बढ़ गया था इसलिए मुझे भारवर्ग में बदलाव करना पड़ा।”
पूजा 75 किलोग्राम भारवर्ग में एशियाई चैम्पियनशिप में 2012 में रजत और 2015 में कांस्य जीत चुकी हैं। उन्होंने कहा, “कंधे में चोट 2017 में हुई थी। हाथ जला था तब मैंने तीन-चार महीने आराम किया था। उसके बाद वापसी की तो ज्यादा अभ्यास से मेरे कंधे में चोट लग गई थी। कंधे में चोट के बाद मुझे एक साल लग गया ठीक होने में। इस दौरान मुझे लगा था कि मैं अच्छा नहीं कर पाऊंगी क्योंकि डॉक्टर ने मुझसे कहा था कि सर्जरी होगी लेकिन मैंने सर्जरी नहीं कराई और एक्सरसाइज से अपनी चोट को ठीक किया।”
राष्ट्रीय टीम के कोच राफेल ने पूजा से हालांकि एक बार फिर 75 किलोग्राम भारवर्ग में वापसी करने की सलाह दी है। पूजा अभी इसे लेकर आशवस्त नहीं है। वह स्वदेश लौट कर अपने कोच संजय श्योराण से इस पर चर्चा करेंगी।
उन्होंने कहा, “मेरे प्रशिक्षक मुझसे भारवर्ग में बदलाव करने के बारे में बात कर रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा है कि वो मुझे वापस 75 में लेकर जाएंगे। उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं तुम्हें एक बार फिर 75 में खेलते देखना चाहता हूं। उन्होंने मुझे फोर्स नहीं किया। मैंने हालांकि इस पर अभी कुछ नहीं सोचा है। मैं घर जा कर अपने संजय सर से बात कर फिर फैसला करूंगी।”
पूजा ने कहा कि उनके लिए यह टूर्नामेंट आसान नहीं था क्योंकि वह उन खिलाड़ियों का सामना कर रही थीं जिनके सामने वह पहले कभी नहीं खेली थीं।
बकौल पूजा, “मैंने जिस भी लड़की के साथ मैच खेला उसके साथ पहली बार मैच खेला था क्योंकि मैं पहली बार 81 भारवर्ग में खेल रही थी। 75 में छह-सात साल खेली तो मैं सभी लड़कियों को जानती थी वो कैसे खेलती हैं। इसमें मैं पहली बार खेल रही थी इसलिए थोड़ी परेशानी हुई।”
एशियाई खेलों की कांस्य पदक विजेता ने कहा, “फाइनल में जो लड़की थी वो विश्व चैम्पियन थी। मैंने कई बार उसके वीडियो देखे। मैं सोच रही थी कि मैं इसके खिलाफ कैसे खेलूंगी। रिंग में जब मैं उतरी तो यह सोच कर उतरी थी चाहे रिंग में विश्व चैम्पियन क्यों न हो मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दूंगी। हमारे कोच बर्गामास्को राफेल ने बताया था कि वो काउंटर अच्छा खेलती है इसलिए तुम आगे नहीं जाना और लेफ्ट से उसे परेशान करते रहना और मौका मिले तब मारना। मैंने वैसा ही किया। मैंने उसके वीडियो भी देखे थे। विश्व चैम्पियनशिप का वीडियो भी देखा था और खासकर वो मैच देखे थे जिसमें वो हारी थी।”
पूजा के लिए मुक्केबाजी की शुरुआत परेशानी भरी रही थी क्योंकि उनके पिता को यह खेल पसंद नहीं था, लेकिन बेटी की सफलता ने पिता की खेल के प्रति नाराजगी दूर की और फिर पिता ने पूजा का भरपूर समर्थन किया।
पूजा ने कहा, “मेरे पिता को मुक्केबाजी पसंद नहीं थी इसलिए वो मना करते थे, लेकिन एक बार जब मैं सफल होती चली गई तब उन्होंने मुझे काफी सपोर्ट किया। उनके दिमाग में यह नहीं था कि मैं लड़की हूं इसलिए वो समर्थन नहीं कर रहे थे। मेरे पिता को सिर्फ मुक्केबाजी पसंद नहीं था इसलिए मना करते थे। मेरे कोच ने भी मेरा काफी समर्थन किया।”