नई दिल्ली, 10 अप्रैल (आईएएनएस)। कर्ज नहीं चुकाने के मामले में फंसे उद्योगपति विजय माल्या के 4,000 रुपये वापस करने की पेशकश से पता चलता है कि वह ऋण चुकाना चाहते हैं। यह बात उद्योग संघ एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने कही।
एसोचैम महासचिव डी.एस. रावत ने शनिवार रात जारी एक बयान में कहा, “डिफॉल्ट को विलफुल तभी घोषित किया जाना चाहिए, जब वह जानबूझकर किया गया हो। जब यह स्थापित हो जाए कि कर्ज लेने वाला कर्ज वापस करना चाहता है, तो डिफॉल्ट को इरादतन नहीं माना जाना चाहिए।”
रावत ने कहा कि ‘विलफुल डिफाउल्टर’ पर बहुत ज्यादा जोर दिया जा रहा है और इससे आम लोगों की नजर में उद्योग जगत की छवि खराब हो रही है, जबकि सच्चाई यह है कि वे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और रोजगार सृजन में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने कहा, “कारोबारी जीवन में कठिन समय आया करते हैं। ऐसे समय भी आते हैं, जब एक उद्यमी पूरी कोशिश करने के बाद भी संकट जैसी स्थिति का सामना करते हैं।”
रावत ने कहा, “विलफुल डिफाउल्ट को लेकर की जा रही हायतौबा के बीच सरकार को संयम बरतनी चाहिए और मीडिया के दबाव में नहीं आना चाहिए, जो कई बार सही और गलत के अतिरंजित बहस में फंस जाता है।”
किंगफिशर एयरलाइस और माल्या के मामले में उन्होंने कहा, “मीडिया और जन सुनवाई से बचना चाहिए, क्योंकि ये उद्योग, बैंक या देश की वित्तीय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है।”
उन्होंने कहा कि बैंकों का मुख्य ध्यान कर्ज की वसूली पर होना चाहिए और इसके लिए वाजिब कोशिश होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “माल्या ने अच्छा किया या बुरा इसे कानून लागू करने वाली एजेंसियों और अदालत पर छोड़ देना चाहिए। बैंकों को खुले दिमाग से यह जरूर सोचना चाहिए कि उसके सामने क्या विकल्प हैं।”