नई दिल्ली, 20 सितम्बर (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रतिबंधित गुट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से संबंध और प्रमुख नेताओं की हत्या की साजिश में संलिप्तता के आरोप की जांच अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) से करवाने की मांग वाली याचिका पर अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को सिलसिलेवार ढंग से घटनाक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि पूरा मामला मनगढं़त है।
पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में महाराष्ट्र पुलिस का दोष निकालते हुए सिंघवी ने पीठ को बताया कि जब जांच की विश्वसनीयता व शुचिता पर संदेह हो तो फिर विशेष जांच दल से ही जांच करवाई जानी चाहिए।
इन पांच कार्यकर्ताओं में वरवर राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा शामिल हैं।
सिंघवी ने बताया कि प्रधानमंत्री जैसे उच्चाधिकारियों की हत्या के लिए माओवादी साजिश के आरोप पर अलग से कोई एफआईआर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरी कवायद का मकसद ‘डर का माहौल पैदा करना है।’
शिकायतकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अदालत को तय करना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहां समाप्त होती है और अवैध गतिविधियां कहां से शुरू होती हैं। उन्होंने कहा, “अगर गैर कानूनी गतिविधियां संलिप्त हैं, तो जांच अवश्य जारी रहनी चाहिए।”
साल्वे ने हर मामले में अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग को खतरनाक बताया। उन्होंने कहा, “अगर वे सीबीआई, एनआईए पर भरोसा नहीं करेंगे तो फिर किस पर करेंगे। क्या एफबीआई (अमेरिकी जांच एजेंसी) पर करेंगे?”