नई दिल्ली, 27 सितंबर- भारतरत्न से विभूषित भारत की ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर को बचपन से ही गाने का शौक था और संगीत में उनकी बेहद दिलचस्पी थी। लता ने एक बार बातचीत में ‘बीबीसी’ को बताया था कि जब वह चार-पांच साल की थीं तो किचन में खाना बनाती अपनी मां को स्टूल पर खड़े होकर गाने सुनाया करती थीं। तब तक उनके पिता को बेटी के गाने के शौक के बारे में पता नहीं था।
स्वर साम्राज्ञी लता 28 सितंबर को अपने जीवन के 85 साल पूरे करने जा रही हैं। उनका गाया गीत ‘नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे’ वास्तव में उनके व्यक्तित्व, कला और अद्वितीय प्रतिभा का परिचायक है। मराठीभाषी लता ने फिल्मों में पाश्र्वगायन के अलावा गर फिल्मी गीत भी गाए हैं और कई भाषाओं के गीत गाए हैं।
मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मीं कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंचीय गायक दीनानाथ मंगेशकर और सुधामती की पुत्री हैं। पांच भााई-बहनों में सबसे बड़ी लता को उनके पिता ने पांच साल की उम्र से ही संगीत की तालीम दिलवानी शुरू की थी।
बहनों आशा, उषा और मीना के साथ संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के साथ साथ लता बचपन से ही रंगमंच के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं। जब लता सात साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आ गया, इसलिए उनकी परवरिश मुंबई में हुई।
एक बार पिता की अनुपस्थिति में उनके एक शागिर्द को लता एक गीत के सुर गाकर समझा रही थीं, तभी पिता आ गए। पिताजी ने उनकी मां से कहा, “हमारे खुद के घर में गवैया बैठी है और हम बाहर वालों को संगीत सिखा रहे हैं।” अगले दिन पिताजी ने लता को सुबह छह बजे जगाकर तानपुरा थमा दिया।
वर्ष 1942 में दिल का दौरा पड़ने से पिता के देहावासान के बाद लता ने परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ वर्षो तक हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया, जिनमें प्रमुख हैं ‘मीरा बाई’, ‘पहेली मंगलागौर’, ‘मांझे बाल’, ‘गजा भाऊ’, ‘छिमुकला संसार’, ‘बड़ी मां’, ‘जीवन यात्रा’ और ‘छत्रपति शिवाजी’।
लता के फिल्मों में पाश्र्वगायन की शुरुआत 1942 में मराठी फिल्म ‘कीती हसाल’ से हुई, लेकिन दुर्भाग्य से यह गीत फिल्म में शामिल नहीं किया गया। कहते हैं, सफलता की राह आसान नहीं होती। लता को भी सिनेमा जगत में कॅरियर के शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। उनकी पतली आवाज के कारण शुरुआत में संगीतकार फिल्मों में उनसे गाना गवाने से मना कर देते थे।
अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर हालांकि धीरे-धीरे उन्हें काम और पहचान दोनों मिलने लगे। 1947 में आई फिल्म ‘आपकी सेवा में’ में गाए गीत से लता को पहली बार बड़ी सफलता मिली और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
वर्ष 1949 में गीत ‘आएगा आने वाला’, 1960 में ‘ओ सजना बरखा बहार आई’, 1958 में ‘आजा रे परदेसी’, 1961 में ‘इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा’, ‘अल्लाह तेरो नाम’, ‘एहसान तेरा होगा मुझ पर’ और 1965 में ‘ये समां, समां है ये प्यार का’ जैसे गीतों के साथ उनके प्रशंसकों और उनकी आवाज के चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।
यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी सिनेमा में गायकी का दूसरा नाम लता मंगेशकर है। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जब एक कार्यक्रम में लता ने कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे।
भारत सरकार ने लता को पद्म भूषण (1969) और भारत रत्न (2001) से सम्मानित किया। सिनेमा जगत में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और फिल्म फेयर पुरस्कारों सहित कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा गया है।
सुरीली आवाज और सादे व्यक्तित्व के लिए विश्व में पहचानी जाने वाली संगीत की देवी लता आज भी गीत रिकार्डिग के लिए स्टूडियो में प्रवेश करने से पहले चप्पल बाहर उतार कर अंदर जाती हैं।