दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)। एक्शन एड इंडिया ने ‘एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मंच’ के साथ मिलकर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शनिवार को एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी की गई ‘महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति’ पर आयोजित परिचर्चा में सामाजिक कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के संगठनों ने भाग लिया।
परिचर्चा में सम्मिलित प्रतिभागियों ने एकमत से विचार रखा कि मसौदा नीति एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि इसमें महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों और समानता, दोनों को सम्मिलित किया गया है।
लेकिन, परिचर्चा में शामिल प्रतिभागियों ने माना कि नीति दस्तावेज में अभी भी खामियां हैं और इस पर अभी भी काफी काम किया जाना शेष है।
परिचर्चा में कहा गया कि नीति में महिलाओं के सशक्तिकरण के द्वारा उनकी स्थिति बदलने के बारे में बात की गई है, लेकिन समाज में उनकी अधीनस्थ स्थिति में परिवर्तन के बड़े सवाल पर कोई बात नहीं की गई है।
यह राय उभर कर आई कि नीति में महिलाओं को विकास और सशक्तिकरण के काम का निष्क्रिय लाभार्थी माना गया है, जबकि उन्हें केंद्रीय से लेकर ग्रामीण, सभी स्तरों पर योजना में और नीतियों की निगरानी में सक्रिय भागीदार और हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।
एक्शन एड इंडिया के कार्यकारी निदेशक संदीप छाछरा ने इस बारे में कहा, “हम नीति को लैंगिक न्याय और महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने के एजेंडे के रूप में देखते हैं। सामाजिक न्याय का विचार काफी परिवर्तनकारी हो सकता है। वर्तमान मसौदे में सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से महिलाओं की दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा ही शामिल है। जरूरत है कि महिलाओं के काम को केवल बच्चे पैदा करने, बच्चों के पालन-पोषण या घरेलू कामकाज और पारिवारिक उद्यमों से जोड़कर ही न देखा जाए, बल्कि सामुदायिक कार्यो और एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडी) और मिड डे मील योजना (एमडीएमएस) जैसे सरकारी कार्यक्रमों से भी जोड़कर देखा जाए, जिसमें लाखों महिलाएं कार्यरत हैं।”
उन्होंने कहा, “नीति में महिलाओं की कमजोर स्थिति की भी पहचान की जानी चाहिए। हम इसे वृद्ध, विकलांग महिलाओं, मैला ढोने के काम में लगी दलित महिलाओं, तस्करी से बचीं और घरेलू श्रम में लगीं आदिवासी महिलाओं समेत कई स्थितियों में देख सकते हैं। जब हम विभिन्न कमजोरियों को पहचान पाएंगे तभी हम विभिन्न स्तरों पर सुरक्षा के लिए नीतियां बना पाएंगे।”
एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मंच की डॉ. गिन्नी श्रीवास्तव ने कहा, “सरकार ने महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति को लागू करने में मसौदा नीति में स्पष्ट तौर पर एकल महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया है। इस समूह में पांच करोड़ महिलाएं आती हैं, इसलिए यह मसौदा नीति का एक खास पहलू है। लेकिन, इसमें महिलाओं के सशक्तिकरण में संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर नहीं किया गया है। हम महिला और बाल विकास मंत्रालय से यह बदलाव लाने की सिफारिश करेंगे।”
राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय परामर्शदाताओं से प्राप्त अंतिम सिफारिशें मंत्रालय को भेजी जाएंगी।