कोलकाता-| निर्देशक नीरज घेवन इस बात पर कायम है कि आधुनिक वाराणसी की पृष्ठभूमि वाली उनकी फिल्म ‘मसान’ ने गरीबी को उत्पाद बनाकर नहीं बेचा बल्कि भारत के परिवर्तन के दौर को चित्रित किया है। फिल्म शुक्रवार (आज) को रिलीज हो गई।
ट्विटर पर कई लोग लिख रहे हैं कि यह फिल्म गरीबी को उत्पाद बनाकर बेच रही है।
घेवन ने यहां आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में इस बारे में कहा, “मुझे यह (गरीबी बेचने का) उलाहना मिल रहा है। ढेरों ऐसी ट्वीट हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि ‘ओह! क्या वह एक और ऐसा फिल्मकार है, जो गरीबी को बेच रहा है और इसका लाभ उठा रहा है।”
उन्होंने कहा, “लेकिन मेरा यकीन करिए, जब आप फिल्म देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि हम (मैं और मेरे लेखक वरुण ग्रोवर) भी इस चीज से उतनी ही नफरत करते हैं। फिल्म का किरदारों और उनकी आंतरिक-निजी कहानियों से लेना-देना है। इसका सामाजिक-राजनीतिक पूर्वाग्रह से कोई सरोकार नहीं है।”
‘मसान’ में ऋचा चड्ढा, संजय मिश्रा, श्वेता त्रिपाठी और विकी कौशल मुख्य भूमिका में हैं। इसने 68वें कान्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में दो पुरस्कार जीते थे। यह इस प्रतिष्ठित फिल्मोत्सव में प्रोमिसिंग फ्यूचर प्राइज और इंटरनेशन फेडरेशन ऑफ फिल्म क्रिटिक्स फिप्रेसी अवार्ड से नवाजी गई थी। इसकी स्क्रीनिंग मई में हुई और स्क्रीनिंग के बाद लोगों ने इसकी सराहना में खड़े होकर पांच मिनट तक तालियां बजाई थीं।
‘मसान’ की कहानी चार जिंदगियों के इर्दगिर्द घूमती है। इसके जरिए घेवन छोटे शहरों के रोमांस के उस भोलेपन को दिखाना चाहते थे, जो ‘नदिया के पार’ फिल्म में दिखा था।
उन्होंने छोटे शहरों को एक अलग रोशनी में पेश करने का फैसला भी सोच-समझकर लिया था।
घेवन ने कहा कि इसलिए आपको फिल्म में दशाश्वमेध घाट की आरती, नागा साधु और वाराणसी की पर्याय बन चुकी अन्य चीजें नहीं दिखेंगी।
उन्होंने कहा, “हम उस हिस्से को नहीं दिखाना चाहते थे। किरदार और कहानियां ज्यादा अहम हैं, इसलिए हम उस हिस्से से बचना चाहते थे। यह पटकथा में पहले से सोच-समझकर किया गया था।”
एक भारतीय ऑफ-बीट फिल्म को लेकर इतनी जबर्दस्त प्रतिक्रिया क्यों है?
जवाब में घेवन ने कहा कि क्योंकि फिल्म ने ‘वास्तविक भारतीय भावनाओं’ को ईमानदारी के साथ चित्रित किया है।