मलमास में मांगलिक कार्य तो वर्जित रहते हैं, लेकिन भगवान की आराधना, जप-तप, तीर्थ यात्रा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इस मास में भगवान शिव की अराधना बेहद फलदायी होती है।
विद्वानों के अनुसार, हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश को संक्रांति होना कहा जाता है। सौर मास 12 और राशियां भी 12 होती हैं। जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिक मास होता है। यह स्थिति 32 माह 16 दिन में एक यानि हर तीसरे वर्ष बनती है।
इस वर्ष 17 जून से 16 जुलाई तक का समय मलमास का रहेगा। इस माह में जप, तप, तीर्थ यात्रा, कथा श्रवण का बड़ा महत्व है। अधिक मास में प्रतिदिन भागवत कथा का श्रवण करने से अभय फल की प्राप्ति होती है। मलमास को भगवान विष्णु की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
आषाढ़ मास में मलमास लगने का संयोग दशकों बाद बनता है। इससे पूर्व 1996 में यह संयोग बना था तथा अगली बार 2035 में यह संयोग बनेगा।
डॉ. शिवकुमार शुक्ल के मुताबिक, जुलाई से दिसंबर तक पड़ने वाले त्योहार मौजूदा साल की तिथियों के मुकाबले दस से 20 दिन तक की देरी से आएंगे। यह स्थिति अधिक मास के कारण बनेगी।
उन्होंने बताया कि 2012 में अधिक मास होने के कारण दो भाद्रपद थे और 2015 में दो आषाढ़ होंगे, जबकि 2018 में 16 मई से 13 जून तक दो ज्येष्ठ होंगे। अधिमास में किए जाने वाले पूजन यज्ञ से मिलने वाले फल की चर्चा करते हुए डॉ. शुक्ल ने बताया कि इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, हवन, जप-तप एवं दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है।
खास तौर पर भगवान कृष्ण, श्रीमद् भागवत गीता, श्रीराम की अराधना, कथा वाचन एवं विष्णु की उपासना की जाती है। इस मास में एक समय भोजन करना, भूमि पर सोने से भी लाभ प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों एवं धार्मिक स्थानों पर जाकर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
डॉ. शुक्ल के मुताबिक, अधिमास में आने वाली शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की एकादशी पद्मिनी एवं परमा एकादशी कहलाती है, जो इष्ट फलदायिनी, वैभव एवं कीर्ति में वृद्धि करती है। अधिक मास में शादी, विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित जैसे मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।