नरसिंहपुर(मध्यप्रदेश), 7 फरवरी- अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ट्रस्ट गठन की घोषणा के दो दिन बाद, दशकों पुराने मंदिर आंदोलन में शामिल शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को शामिल नहीं किए जाने को लेकर आपत्ति जताई है, जिससे विवाद शुरू हो गया है। स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्ते श्वरानंद ने शुक्रवार को चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इसमें संशोधन नहीं किया तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।
शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने यहां वासुदेवानंद सरस्वती को ट्रस्ट में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्वरूपानंद को ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में मान्यता दी थी।
स्वरूपानंद सरस्वती ने एक बयान में कहा, “मैं ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य हूं। प्रधानमंत्री ने ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में अन्य व्यक्ति को नामित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है। कोर्ट ने वासुदेवानंद को संन्यासी भी नहीं माना था।”
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार फैसलों में वासुदेवानंद को शंकराचार्य के रूप में मानने से इनकार कर दिया था।
उन्होंने अपने बयान में कहा, “अगर ट्रस्ट में शंकराचार्य को रखना ही था तो परासरण के स्थान पर ट्रस्ट की अध्यक्षता शंकराचार्य को दी जानी चाहिए थी। उन्हें ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया है और उनके आवास को इसका कार्यालय। परासरण देश के वरिष्ठ वकील हैं और संविधान के जानकार हैं..ऐसा लगता है कि सरकार धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के साथ राममंदिर बनाना चाहती है, न कि वैदिक विधानों के साथ।”
शंकराचार्य ने कहा कि चार शंकराचार्यो के सम्मेलन में राम मंदिर निर्माण के लिए 1990 के दशक में रामालय ट्रस्ट बनाया गया था। सम्मेलन में शंकराचार्य, वैष्ण्वाचार्य, अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस ट्रस्ट का गठन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हुआ था, लेकिन केंद्र सरकार ने एक नए ट्रस्ट का गठन कर एक कार्यरत ट्रस्ट को नजरअंदाज कर दिया।
स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद के अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति को ट्रस्ट में शामिल किया गया है। इसके अलावा कुछ अधिकारियों को सरकार ने नियुक्त किया है, जो संविधान का सरासर उल्लंघन है।