भोपाल, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)| दमोह के पथरिया में ललन यादव ने बड़े अरमानों के साथ अपने खेत में सोयाबीन की फसल बोई थी, लेकिन मौसम की मार ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया, जिससे वह इतना आहत हुआ कि उसने उसी खेत में खुद पर मिट्टी का तेल डालकर जान दे दी, जिसमें उसके सपने बसते थे। इसी तरह सागर के सूरादेही में किसान सुरेंद्र लोधी ने फसल की बर्बादी और कर्ज से परेशान होकर फांसी लगाकर जान दे दी। शुक्रवार को दो किसानों की आत्महत्याएं राज्य में जारी किसानों के ‘मृत्यु राग’ का हिस्सा हैं।
राज्य में बीते एक पखवाड़े में शायद ही ऐसा कोई एक दिन गुजरा हो जब किसी हिस्से से किसान के सूखा और कर्ज के चलते आत्महत्या करने की खबर न आई हो। लगभग हर रोज एक और उससे ज्यादा किसान मौत को गले लगा रहे हैं। बीते दो दिनों की ही बात करें तो अलग-अलग हिस्सों में चार किसानों ने आत्महत्या की है। यह बात अलग है कि किसानों की आत्महत्या की वजह सरकारी मशीनरी सिर्फ सूखा और कर्ज नहीं मानती है।
किसान नेता शिवकुमार शर्मा का कहना है, “सरकार यह प्रचारित कर रही है कि सिर्फ सोयाबीन की फसल ही खराब हुई है, जबकि वास्तविकता यह है कि किसान बीते पांच वर्षो से तरह-तरह की मार झेल रहे हैं, जिसने उसकी कमर तोड़ दी है। सरकार का रवैया किसान विरोधी है। यही कारण है कि राज्य में चार से पांच किसान हर रोज आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार को यह समझना होगा कि किसान किसी एक फसल के खराब होने पर ऐसा कदम नहीं उठाता है।”
शर्मा कहते हैं कि राज्य सरकार वादे तो खूब करती है, लेकिन किसान के हाथ कुछ नहीं आता। ऊपर से सत्ताधारी दल भाजपा के नेता किसानों की आत्महत्या पर इस तरह बोल जाते हैं कि उनका दर्द कई गुना बढ़ जाता है। सरकार के कई मंत्री तो ऐसे हैं जिन्हें किसान की आत्महत्या में दूसरे कारण नजर आते हैं।
सूखा से बिगड़े हालात के बीच राज्य सरकार ने 141 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, वहीं सरकार के पास जो सूखा संबंधी रिपोर्ट जिलों से आई है वह बताती है कि समर्थन मूल्य के आधार पर खरीफ की फसल और धान की फसल को कुल 13,800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसी आधार पर केंद्र सरकार को 15 हजार करोड़ रुपये की मदद का प्रस्ताव भेजा जा रहा है।
सरकार भी सूखे के हालात से चिंतित है और किसानों को सहायता का भरोसा दिलाने में लगी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि सरकार किसानों के साथ खड़ी है, उन्हें राहत राशि दी जाएगी, बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा और उनकी हरसंभव मदद में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
कर्ज पर ब्याज की राशि को माफ किया गया है, वहीं कर्ज की अवधि में बदलाव किया गया है, ताकि किसान को कोई परेशानी न आए। इसके साथ ही आगामी फसल के लिए पानी, बिजली आदि की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है। किसान साल हारे हैं, जिंदगी नहीं हारे हैं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव बादल सरोज का कहना है, “खुद को किसान का बेटा कहने वाले (मुख्यमंत्री चौहान) को पता ही नहीं कि किसान का दर्द क्या है, यही कारण है कि राज्य में साल दर साल किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार ने किसानों को गेहूं पर प्रति क्विंटल मिलने वाले 150 रुपये के बोनस को बंद कर दिया है, दूसरी ओर खेती की लागत बढ़ रही है।”
उन्होंने कहा, “किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं, यह चिंता का विषय है, क्योंकि किसान जैसा संतोषी और धीरज रखने वाला कोई दूसरा वर्ग नहीं है। सरकार बातें किसानों की खूब करती है, मगर उन्हें मिलता कुछ नहीं है, सरकार को सोचना चाहिए कि बातों से किसानों का पेट नहीं भरेगा।”
कांग्रेस विधायक और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है, “राज्य सरकार हमेशा अपने को किसान हितैषी बताने की कोशिश करती है, मगर हकीकत उससे उलट है, किसान की हालत दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रहा है, खेती की लागत बढ़ रही है और उसका दाम उसे नहीं मिल रहा। सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण ही किसान आत्महत्या कर रहे हैं।”
वहीं आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक अग्रवाल को राज्य सरकार द्वारा किसानों से किए जाने वाले वादों में खोट नजर आती है। उनका कहना है कि राज्य में खेती घाटे का धंधा बन चुकी है, किसान को अपनी फसल का दाम नहीं मिलता, दूसरी ओर फसल के नुकसान से किसान का कर्ज बढ़ता जाता है। लिहाजा, सरकार को स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के आधार पर लागत का डेढ़ गुना दाम तय करना चाहिए, इसके साथ ही किसानों के कर्ज को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
राज्य में सूखा के चलते बिगड़े हालात से सरकार चिंतित है और उसने तमाम सरकारी अफसरों को तीन दिन के लिए गांवों में भेजा है, जो किसानों के बीच पहुंचकर उनका हाल जानेंगे तथा सरकार को रिपोर्ट देंगे और उसके बाद सरकार मंथन करेगी कि सूखा और किसानों की समस्याओं से कैसे निपटा जाए।
अब देखना होगा कि राज्य में वाकई में सरकार की ओर से किसानों के लिए ऐसे प्रयास होते हैं, जो नजर आएं और किसानों का आत्मविश्वास बढ़े, अन्यथा वही होगा जो अब तक होता आया है और किसान मौत को गले लगाने को मजबूर होते रहेंगे।