दामोह, 26 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की दमोह संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा एक बार फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रहलाद पटेल को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कांग्रेस में भी पिछड़े वर्ग के किसी नेता पर दांव लगाने की तैयारी चल रही है। पिछले आठ चुनावों से यहां पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को ही जीत मिली है, और बीते साढ़े तीन दशक से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।
दामोह, 26 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की दमोह संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा एक बार फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रहलाद पटेल को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कांग्रेस में भी पिछड़े वर्ग के किसी नेता पर दांव लगाने की तैयारी चल रही है। पिछले आठ चुनावों से यहां पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को ही जीत मिली है, और बीते साढ़े तीन दशक से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।
दमोह सीट के लिए उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया से जुड़े कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को ही इस सीट (दमोह) से उम्मीदवार बनाया जाएगा, क्योंकि यहां इस वर्ग का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा है।
कांग्रेस के ऐसे एक नेता ने नाम जाहिर न करने के अनुरोध के साथ कहा, “दो नामों पर ज्यादा जोर है। अभी हाल ही में भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व सांसद रामकृष्ण कुसमरिया और दूसरे वैभव सिंह लोधी। कुसमरिया कुर्मी वर्ग से हैं, वैभव सिंह का लोधी वर्ग से नाता है। कुसमरिया बुजुर्ग हैं और उन पर दलबदल का भी टैग है। वैभव का दावा ज्यादा मजबूत है।”
उल्लेखनीय है कि वैभव की कांग्रेस के भीतर गहरी पकड़ है। उनके दो चचेरे भाई राहुल लोधी और प्रद्युम्न सिंह लोधी विधायक हैं, जो इसी संसदीय क्षेत्र से आते हैं।
कांग्रेस नेता ने कहा, “कुसमरिया और वैभव में से किसी एक को चुनने की चुनौती पार्टी के सामने है। इसके अलावा कुछ और भी नाम बड़े नेताओं की ओर से दिए गए हैं, मगर उनका जनाधार ज्यादा नहीं है।”
कांग्रेस नेता ने बताया कि लोधी वर्ग से जया लोधी और प्रताप लोधी ने भी इस सीट से दावेदारी पेश की है।
उल्लेखनीय है कि कुसमरिया चार बार दमोह संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद रह चुके हैं। उन्होंने खजुराहो संसदीय सीट से भी सांसद रह चुके हैं। व दमोह जिले से विधायक रहे और शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
वैभव युवा और पढ़े-लिखे हैं, साथ ही उन्हें कांग्रेस के विधायकों का समर्थन हासिल है। वह इस क्षेत्र में पिछड़े युवा नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं। वह बुंदेलखंड में पिछड़ा वर्ग आंदोलन के अगुआ के तौर पर भी पहचाने जाते हैं।
कांग्रेस नेता ने बताया, “पूर्व मंत्री राजा पटैरिया और पार्टी के जिलाध्यक्ष अजय टंडन भी इस सीट से उम्मीदवारी की दौड़ में हैं। दोनों ने दावे पेश किए हैं, लेकिन दोनों ब्राह्मण हैं। जबकि पार्टी पिछड़े वर्ग पर ही दांव लगाना चाहती है।”
दमोह संसदीय क्षेत्र में 17 लाख से अधिक मतदाता हैं। जातीय आधार पर इसमें लोधी समुदाय के लगभग 20 प्रतिशत, कुर्मी सात प्रतिशत, और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक है। पिछड़ा वर्ग और खासकर लोधी मतदाताओं की संख्या को देखते हुए भाजपा ने लोधी उम्मीदवार प्रहलाद पटेल को ही एक बार फिर मैदान में उतार है। उन्होंने पिछले चुनाव (2014) में इस सीट से 2,13,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत दर्ज कराई थी।
इस संसदीय सीट में दमोह की चार, छतरपुर की एक और सागर जिले की तीन विधानसभा सीटें आती हैं। इन आठ विधानसभा सीटों में से पांच पिछड़े वर्ग के पास हैं, दो आरक्षित हैं और एक सीट से सवर्ण विधायक है। इनमें से पिछड़ा वर्ग के चार विधायक कांग्रेस के हैं और एक भाजपा का है। ऐसे में कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का उम्मीदवार उतारकर इस सीट पर अपना वनवास तोड़ने को लेकर आशावान है।
दमोह सीट पर वर्ष 1962 से अबतक कांग्रेस को सिर्फ पांच बार जीत मिली है। भाजपा और कांग्रेस विरोधी उम्मीदवारों ने यहां से नौ बार जीत दर्ज कराई है। वर्ष 1989 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।
बुंदेलखंड की राजनीतिक समझ रखने वाले संतोष गौतम का कहना है, “दमोह संसदीय क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग के वोटरों की संख्या अधिक है। इसमें सबसे ज्यादा लोधी वर्ग से हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में आठ में से चार सीटों पर लोधी उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई है। लिहाजा यह चुनाव पिछड़े मतदाताओं पर निर्भर करेगा। यही कारण है कि नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव को भाजपा की ओर से दावेदारी वापस लेना पड़ी और भाजपा ने प्रहलाद पटेल को उम्मीदवार बनाया। अब कांग्रेस भी इसी दिशा में सोच रही है।”