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 मप्र की नर्मदा, क्षिप्रा व बेतवा नदी पर श्वेत पत्र जारी हो : राजेंद्र सिंह (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Saturday , 30 November 2024

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मप्र की नर्मदा, क्षिप्रा व बेतवा नदी पर श्वेत पत्र जारी हो : राजेंद्र सिंह (साक्षात्कार)

भोपाल, 24 फरवरी (आईएएनएस)। देश भर में गहराते जल संकट के लिए जलपुरुष के तौर पर पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि मध्य प्रदेश की सरकार को नर्मदा, बेतवा और क्षिप्रा नदी को लेकर श्वेत-पत्र जारी करे ताकि नदियों की वास्तविक स्थिति का पता चल सके।

भोपाल, 24 फरवरी (आईएएनएस)। देश भर में गहराते जल संकट के लिए जलपुरुष के तौर पर पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि मध्य प्रदेश की सरकार को नर्मदा, बेतवा और क्षिप्रा नदी को लेकर श्वेत-पत्र जारी करे ताकि नदियों की वास्तविक स्थिति का पता चल सके।

जल-जन जोड़ो अभियान के द्वारा यहां मानस भवन में आयोजित राष्ट्रीय जल सम्मेलन में हिस्सा लेने आए सिंह ने रविवार को आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि देश में नदियों के नाम पर खूब राजनीति हुई है, कई ने तो इसके जरिए सत्ता हासिल कर ली तो वहीं किसी को सत्ता गंवाना पड़ी है। देश की सबसे पवित्र नदी गंगा को लेकर तमाम वादे हुए मगर गंगा की हालत में कोई बदलाव नहीं आया। ठीक इसी तरह मध्य प्रदेश में भी नदियों के सहारे राजनीति हुई।

सिंह ने कहा कि नर्मदा नदी को लेकर पूर्ववर्ती सरकार के नेता (शिवराज सिंह चौहान) ने नर्मदा यात्रा निकाली, उसके बाद एक अन्य नेता (दिग्विजय सिंह) ने पद यात्रा की। इसके बाद भी नदी की हालत नहीं सुधरी। पूर्ववर्ती सरकार ने नदी को लेकर वादे पूरे नहीं किए, लिहाजा उसे जाना पड़ा। नई सरकार से कुछ उम्मीदें है, लिहाजा उसे नर्मदा के साथ राज्य की बेतवा और क्षिप्रा नदी को लेकर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि नदियों की हालत क्या है।

एक सवाल के जवाब में राजेंद्र सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश की बात की जाए तो बीते तीन दशकों में इस राज्य में पानी का संकट बढ़ा है, अंधाधुंध दोहन होने के कारण, जमीन का पेट खाली हो चला है। तालाबों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है, तालाबों के आसपास अतिक्रमण कर लिया गया है, पानी जाने का रास्ता बंद है, कई स्थानों पर तो तालाब खत्म ही हो गए हैं। इसका नतीजा है कि जलस्तर नीचे चला गया है।

सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि तालाब में पानी की उपलब्धता उच्च वर्ग के जीविकोपर्जन का साधन हुआ करती थी, तालाब का पानी मछुआरों के काम आता था, किसानों के काम आता था, तो दूसरी ओर जलस्तर बना रहता था, अब तालाबों में ही पानी नहीं है तो इन वर्गो का जीवन मुसीबत भरा हो चला है।

उन्होंने गहराते जल संकट के बढ़ते दायरे का ब्योरा देते हुए कहा कि 17 राज्यों के 317 जिले जलसंकट के दौर से गुजर रहे हैं। हालत यह है कि देश का बड़ा हिस्सा दुष्काल की चपेट में आने को है। यह अचानक नहीं हुआ, बल्कि सरकार की नीतियों के कारण सूखाग्रस्त क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है। हमारे जीवन में शोषक का विचार पनपा है, उसी का नतीजा है कि पानी का शोषण तो किया, उसे बचाने की कोई मुहिम नहीं चलाई।

सिंह ने पानी के बढ़ते बाजार का जिक्र करते हुए कहा कि देश में कई कंपनियां पानी का शोषण कर अपना कारोबार चला रही हैं, साथ ही कहती है कि देश की नदियां कभी नहीं सूखने वाली। वहीं मशीन जैसे बोरवेल में उपयोग आने वाले उपकरणों का निर्माण करने वाली कंपनियां जल उपयोग के लिए खनन को प्रोत्साहित कर रही है। लिहाजा किसान ने तालाब बनाना बंद कर दिया है, जिसके कारण धरती का पानी निकाला जा रहा है, मगर उसके पेट भरने का कोई इंतजाम नहीं।

बुंदेलखंड के चंदेलकालीन तालाबों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वहां कभी 1000 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे, मगर वर्तमान दौर में वह इलाका सबसे ज्यादा जलसंकट ग्रस्त है, क्योंकि वहां तालाब खत्म हो गए हैं और जल संरचनाएं अस्तित्व खो रही हैं।

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