12 राशियों में 9 ग्रहों के विचरने से 108 प्रकार की शुभ अशुभ स्थितियों का निर्माण होता है जो हर मानव को प्रभावित करती है। हर व्यक्ति यह चाहता है की उसके साथ सिर्फ अच्छी परिस्थितियाँ हो , पर बुरी परिस्थितियाँ भी आ जाती है और हर कोई मन मसोस कर कहता है की होनी को कौन टाल सकता है। पर बुरी परिस्थितियों को टाला जा सकता है या उसका प्रभाव इतना कम किया जा सकता है की वे नाम मात्र का नुकसान कर चली जाए। कलयुग में होने का एक ही फायदा है की हम मन्त्र जप कर बड़े बड़े तप अनुष्ठान का लाभ पा सकते है। मन्त्र अगर गुरु ने दीक्षा दे कर दिया हो तो और प्रभावी होता है।जिन्होंने मंत्र सिद्ध किया हुआ हो, ऐसे महापुरुषों के द्वारा मिला हुआ मंत्र साधक को भी सिद्धावस्था में पहुँचाने में सक्षम होता है | सदगुरु से मिला हुआ मंत्र ‘सबीज मंत्र’ कहलाता है क्योंकि उसमें परमेश्वर का अनुभव कराने वाली शक्ति निहित होती है |मन्त्र जप से एक तरंग का निर्माण होता है जो मन को उर्ध्व गामी बनाते है।जिस तरह पानी हमेशा नीचे की बहता है उसी तरह मन हमेशा पतन की ओर बढ़ता है अगर उसे मन्त्र जप की तरंग का बल ना मिले। कई लोग टीका टिप्पणी करते है की क्या हमें किसी से कुछ चाहिए तो क्या उसका नाम बार बार लेते है ? पर वे नासमझ है और मन्त्र की तरंग के विज्ञान से अनजान है। मंत्र जाप का प्रभाव सूक्ष्म किन्तु गहरा होता है। जब लक्ष्मणजी ने मंत्र जप कर सीताजी की कुटीर के चारों तरफ भूमि पर एक रेखा खींच दी तो लंकाधिपति रावण तक उस लक्ष्मणरेखा को न लाँघ सका। हालाँकि रावण मायावी विद्याओं का जानकार था, किंतु ज्योंहि वह रेख को लाँघने की इच्छा करता त्योंहि उसके सारे शरीर में जलन होने लगती थी। मंत्रजप से पुराने संस्कार हटते जाते हैं, जापक में सौम्यता आती जाती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है। मंत्रजप से चित्त पावन होने लगता है। रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं। दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं।सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है। जैसे, ध्वनि-तरंगें दूर-दूर जाती हैं, ऐसे ही नाद-जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहरे उतर जाती हैं तथा पिछले कई जन्मों के पाप मिटा देती हैं। इससे हमारे अंदर शक्ति-सामर्थ्य प्रकट होने लगता है और बुद्धि का विकास होने लगता है। अधिक मंत्र जप से दूरदर्शन, दूरश्रवण आदि सिद्धयाँ आने लगती हैं, किन्तु साधक को चाहिए कि इन सिद्धियों के चक्कर में न पड़े, वरन् अंतिम लक्ष्य परमात्म-प्राप्ति में ही निरंतर संलग्न रहे। मंत्रजापक को व्यक्तिगत जीवन में सफलता तथा सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है।मंत्रजप मानव के भीतर की सोयी हुई चेतना को जगाकर उसकी महानता को प्रकट कर देता है। यहाँ तक की जप से जीवात्मा ब्रह्म-परमात्मपद में पहुँचने की क्षमता भी विकसित कर लेता है।
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