तिरुवनंतपुरम, 14 फरवरी (आईएएनएस)। अंतर्राष्ट्रीय आव्रजन मामलों के एक विशेषज्ञ ने कहा कि 1990 के बाद से वैश्विक तेल उद्योग में आई सबसे बड़ी गिरावट की वजह से मध्यपूर्व में रहने और काम करने वाले केरल के लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है।
यहां सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के आव्रजन विभाग के प्रमुख एस.इरुदयाराजन ने आईएएनएस से यह बात कही। उन्होंने कहा कि उच्च पदों पर काम करने वालों पर इस संकट का कुछ असर पड़ सकता है।
इरुदयाराजन ने कहा, “मैं दिसंबर में कतर में था और मैंने पाया कि हालात पहले जैसे ही हैं। ऐसा कुछ नहीं दिखा जिसे मैं तेल के दाम के रसातल में चले जाने से जोड़कर देख सकूं। मुझे बताया गया कि निर्माण क्षेत्र पर भी कोई असर नहीं पड़ा है।”
जून 2014 के बाद से तेल के दाम में 70 फीसदी तक गिरावट हुई है। इस वजह से तेल कंपनियों ने अपने निवेश को घटाया है, अपनी व्यापारिक गतिविधियों को कम किया है और कर्मचारियों की छंटनी की है।
इरुदयाराजन ने कहा, “केरल के लाखों अकुशल और अर्ध कुशल प्रवासी कर्मचारी अपनी मेहनत की कमाई नियमित रूप से राज्य भेजते रहते हैं।”
सदी की बीती चौथाई में आव्रजन की स्थिति का अध्ययन करने वाले इरुदयाराजन का ताजा अध्ययन बताता है कि केरल के 23.63 लाख कर्मियों का 90 फीसदी हिस्सा मध्य पूर्व में काम करता है। इनमें से संयुक्त अरब अमीरात में 38.7 फीसदी और सऊदी अरब में 25.2 फीसदी काम करते हैं।
इरुदयाराजन के अध्ययन का डाटा बताता है कि तेल उद्योग की मंदी का कोई बड़ा असर केरल के प्रवासी कर्मचारियों पर या इनके द्वारा भेजी गई धनराशि से जुड़ी अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा।
बैंकों के ताजा आंकड़ों के मुताबिक केरल के बैंकों में प्रवासी भारतीयों का जमा धन सितंबर 2015 में 1,21,619 करोड़ पहुंच गया था। सितंबर 2013 में यह 80,809 करोड़ था।
उन्होंने यह भी कहा कि केरल के प्रवासियों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो अपना धन कहीं और जमा करता है और जो अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में बसने की तरफ ध्यान देता है।
फिर भी, इरुदयाराजन का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारों को तेल उद्योग की मंदी का आव्रजन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे पता चलेगा कि हालात कैसे हैं और इनसे निपटने के लिए कौन सी योजना बनानी होगी।