मंत्र जाप के लिए मंदिर इसलिए चुने जाते हैं, क्योंकि वहां बैठकर मंत्र का उद्घोष करने से गुंबदाकार मंदिर में शब्द टकराकर पुन: कान के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। मंत्र हमें शारीरिक व मानसिक ऊर्जा से परिपूर्ण कर देते हैं। इससे शरीर के रोम-रोम को लाभ मिलता है।
रामायण व महाभारत में भी श्रीराम व अर्जुन को अग्निबाण, जलबाण, वायुबाण व ब्रह्मास्त्र चलाते हुए बताया गया है। श्रीराम जब बाण चलाते हैं, तो पहले हाथ ऊपर कर आंख बंद करके कुछ स्मरण करते हैं। यह क्रिया मंत्र शक्ति का स्मरण है। मंत्र शक्ति से वे बाणों को शक्ति प्रदान करते हैं। फिर साधारण बाण भी अपार क्षमता वाला हो जाता है। इन बाणों में मंत्र शक्ति से दिव्यता उतारी जाती है। यह मंत्र शक्ति का प्रभाव है। इसलिए मंत्र शक्ति की अपार क्षमता का बोध रखना अनिवार्य है। मंत्रों में छोटे-छोटे शब्द होते हैं, जो अमोघ शक्ति से परिपूर्ण होते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में दोहे व चौपाई के रूप में अनेक मंत्रों की रचना की है, जिनके माध्यम से आज भी लोग मनोवांछित फल प्राप्त कर रहे हैं। सुंदरकांड तो मंत्रों का भंडार है। आज भी लोग जब कहीं जाते हैं तो ‘प्रबिसि नगर कीजै सब काजा’ का पाठ करके जाते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संकट, बीमारी व पारिवारिक कलह से छुटकारा पाने के लिए भी मंत्र हैं।
‘विनय पत्रिका’ में तो ऐसे-ऐसे अमोघ मंत्र हैं, जिनका पाठ करने से तुरंत लाभ मिलता है। भगवान शंकर से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चतुर्दशी को उनके प्रिय मंत्रों का पाठ कर आज भी लाखों लोग लाभ उठा रहे हैं। मंत्र पाठ के लिए केवल इतना ही करना पड़ता है कि हमें उसकी विधि का ज्ञान हो और शब्दों का ठीक से उच्चारण करें। यदि स्वयं कर सकते हों, तो ठीक अन्यथा अपने गुरु से इसकी विधि पूछकर ही पाठ प्रारंभ करें। मंत्रों की शक्ति का स्वयं अनुभव करें। केवल विज्ञान का चश्मा लगाकर सब कुछ जानना चाहेंगे, तो संभव नहीं है। मंत्र के लिए विश्वास होना चाहिए, तभी हम मंत्रों के प्रभाव से परिचित हो सकते हैं।