भोपाल-3 दिसंबर 1984 को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था. इस हादसे में कई हजार लोगों की मौत हुई, तो घायल होने वालों की तादाद भी हजारों में थी. इसके साथ ही इस हादसे से अजन्मे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर भी सवालिया निशान लग गया है.
1984 की भोपाल की वह रात आज भी उन मौतों का शांत शोर ढोती है जो मौतें बिना किसी चीख और बिना शिकवा-शिकायत के हो गईं. 36 सालों का तकाजा यह है कि उस गैस कांड के पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी भी त्रासदी का दंश लेकर पैदा होती हैं और इसी के साथ जीवन जीने को मजबूर हैं.
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई और कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं. अब भी कई लोग ऐसे हैं जो उचित मुआवजा और न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं. गैस पीड़ितों में सबसे बुरी हालत उन महिलाओं की हैं, जिन्होंने अपने पति को इस त्रासदी में खो दिया. जहां कई महिलाओं को विधवा पेंशन योजना के तहत हर महीने 1000 रुपये की राशि मिलती है तो बहुत सी महिलाएं ऐसी भी है जो अब तक इससे वंचित हैं.
गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने भोपाल में कई एनजीओ काम कर रहे हैं, गैस पीड़ितों के लिए आवाज़ उठाने वाली समाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर दावा करती हैं कि 500 के करीब ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें अब तक विधवा पेंशन की राशि नहीं मिल रही है. विधवा महिलाओं के लिए इस योजना को सरकार ने सन 2011 में शुरू किया था. इस बीच यह योजना दो बार बंद भी हुई फिलहाल योजना चालू है लेकिन सरकारी दांव पेंच के बीच कई महिलाओं के आवेदन लम्बित हैं.
सरकार के जिम्मेदार मंत्री और अफसरों की मानें तो उनका दावा है कि गैस पीड़ितों के लिए कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है , बड़ी संख्या में पीड़ितों तक राहत पहुंचाई गई है. आने वाले समय में भी यह सिलसिला जारी रहेगा. जिन महिलाओं को पेंशन नहीं मिल रही है उनको भी इस योजना का लाभ दिया जाएगा.
राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुए यूनियन कार्बाइड गैस कांड के प्रभावितों को 37 वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिला है। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी त्रासदी का दंश झेलने के लिए मजबूर हैं। यहां तक कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास भी पीड़ितों के सवालों के जवाब नहीं हैं। पिछले 37 वर्षों से पीड़ित लगातार सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। ये सवाल गैस पीड़ितों की आर्थिक, सामाजिक विकास, स्वास्थ्य सुविधा, मुआवजा, जहरीले कचरे के निपटान, मृतकों व प्रभावितों की वास्तविक संख्या और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुआवजा राशि के प्रकरण से जुड़े हुए हैं। गैस कांड की बरसी पर इस बार फिर प्रभावितों ने अनदेखी के आरोप लगाए हैं।