मेरी दादी एक किस्सा सुनाती थीं, एक ठाकुर साहब थे, जो बहुत गरीब थे। एकदिन दुकान पर गए, सामान लेने के बाद दुकानदार से बोलें की आज कुछ भी नही जिसे मैं ‘गहन’ (गिरवी) रख सकूं। दुकानदार ने मज़ाक में बोला कि ठाकुर साहब मुछ का एक बाल दे दीजिए।
मजबूर, ठाकुर साहब ने मुछ की बाल दे तो दी, मगर बोले कि सुरक्षित रखना एक सप्ताह बाद लेने वापिस आएंगे।
ठाकुर साहब एक सप्ताह बाद पहुंचे और पूरा पैसा चुकाकर अपना मुछ का बाल मुक्त कराया।
मुझे हमेशा लगता था कि मुछ को लेकर इतना स्वाभिमान सबको होना चाहिए।
अब ये ठाकुर साहब है, पुलिस की सरकारी नौकरी छोड़ने को तैयार है, लेकिन मुछ नही कटवाएंगे।
https://youtu.be/akJl7I79_ds
योगेंद्र चंदेल की वाल से