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 भूमि सुधार असफल, 5 फीसदी के पास 32 फीसदी भूमि | dharmpath.com

Monday , 21 April 2025

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भूमि सुधार असफल, 5 फीसदी के पास 32 फीसदी भूमि

कृषि जनगणना 2011-12 और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 और इस संवाददाता के आंकड़े के मुताबिक देश के 4.9 फीसदी लोगों के पास 32 फीसदी भूमि है, एक बड़े किसान के पास एक सीमांत किसान से 45 गुना अधिक भूमि है, 56.4 फीसदी या 40 लाख ग्रामीणों के पास कुछ भी जमीन नहीं है, जमींदारों से लेने के लिए चिह्न्ति भूमि में से दिसंबर 2015 तक सिर्फ 12.9 फीसदी ही लिए जा सके और दिसंबर 2015 तक 50 लाख एकड़ भूमि 57.8 लाख गरीब किसानों को बांटी जा सकी है।

कृषि जनगणना 2011-12 और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 और इस संवाददाता के आंकड़े के मुताबिक देश के 4.9 फीसदी लोगों के पास 32 फीसदी भूमि है, एक बड़े किसान के पास एक सीमांत किसान से 45 गुना अधिक भूमि है, 56.4 फीसदी या 40 लाख ग्रामीणों के पास कुछ भी जमीन नहीं है, जमींदारों से लेने के लिए चिह्न्ति भूमि में से दिसंबर 2015 तक सिर्फ 12.9 फीसदी ही लिए जा सके और दिसंबर 2015 तक 50 लाख एकड़ भूमि 57.8 लाख गरीब किसानों को बांटी जा सकी है।

भूमि पुनर्वितरण कानून 54 साल से अधिक समय पहले बना था।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के भू-संसाधन विभाग से सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के मुताबिक, 2002 में जहां ग्रामीण भूमि हीन किसानों को 0.95 एकड़ भूमि दी जा रही थी, वहीं 2015 में यह आकार घटकर 0.88 एकड़ हो गया।

दिसंबर 2015 तक देशभर में ‘जरूरत से अधिक’ (सरप्लस) के रूप में 67 लाख एकड़ भूमि चिह्न्ति की गई थी। इसमें से सरकार ने 61 लाख एकड़ भूमि हस्तगत की और 57.8 लाख लोगों को 51 लाख एकड़ भूमि बांटी।

1973 से 2002 के बीच हर वर्ष औसतन डेढ़ लाख एकड़ भूमि को सरप्लस घोषित किया गया और 1.4 लाख एकड़ भूमि बांटी गई थी। 2002 और 2015 के बीच हालांकि यह घटकर क्रमश: 4,000 एकड़ और 24 हजार एकड़ हो गया।

लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) के ग्रामीण अध्ययन केंद्र की 2009 की एक रपट के मुताबिक, आंकड़ों का यह अंतर इस विवाद के कारण है कि कितनी जमीन लाई जा सकती है। वहीं अदालत ने कुछ जमीन पुराने मालिक को वापस कर दी और कु़छ जमीन खेती के लायक नहीं थी।

कानूनी विवाद में फंसी सरप्लस भूमि का आकार 2007 से 2009 के बीच 23.4 फीसदी बढ़कर 9.2 लाख एकड़ से 11.4 लाख एकड़ हो गया।

एलबीएसएनएए के अनुमान के मुताबिक, 2015 तक सरप्लस घोषित की जाने योग्य 5.19 करोड़ एकड़ भूमि में से 12.9 फीसदी भूमि ही सरप्लस घोषित की जा सकी। वहीं 5.19 एकड़ भूमि में से 11.7 फीसदी सरकारी कब्जे में ली जा सकी और 9.8 फीसदी वितरित की जा सकी।

उल्लेखनीय है कि देश की 47.1 फीसदी या 57 करोड़ आबादी अब भी कृषि पर निर्भर है।

यह भी उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल ने गोवा के क्षेत्रफल से अधिक भूमि ग्रामीण भूमिहीन किसानों को वितरित की।

पश्चिम बंगाल ने 14.1 लाख एकड़ भूमि सरप्लस घोषित की, जो देश में कुल सरप्लस घोषित भूमि का 21 फीसदी है।

राज्य ने सरप्लस घोषित भूमि में से 93.6 फीसदी या 13.2 लाख एकड़ पर सरकारी कब्जा किया और सरकारी कब्जे का 79.8 फीसदी यानी, 10.5 लाख एकड़ भूमि वितरित की।

राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति के मसौदे में सरप्लस भूमि के वितरण के लिए पश्चिम बंगाल, केरल और जम्मू एवं कश्मीर को सबसे सफल बताया गया है।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)

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