नई दिल्ली, 20 जून (आईएएनएस)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता प्रकाश करात का मानना है कि अब किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए देश में आपातकाल लागू करना संभव नहीं है, लेकिन देश में अदृश्य रूप में तानाशाही का खतरा मौजूद है।
नई दिल्ली, 20 जून (आईएएनएस)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता प्रकाश करात का मानना है कि अब किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए देश में आपातकाल लागू करना संभव नहीं है, लेकिन देश में अदृश्य रूप में तानाशाही का खतरा मौजूद है।
उन्होंने 40 वर्ष पहले लगे आपातकाल के मुद्दे पर आईएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, “आपातकाल के अनुभव से लोगों में लोकतांत्रिक चेतना मजबूत हुई। मुझे निकट भविष्य में आपातकाल की संभावना नहीं दिखती।”
उन्होंने हालांकि, प्रीवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट (पोटा) और सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफसपा) जैसे कुछ गैर लोकतांत्रिक कानूनों को लेकर आगाह किया। पोटा में जहां बिना आरोप-पत्र दाखिल किए किसी को हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है। वही, अफस्पा के तहत सेना को गड़बड़ी वाले इलाके में विशेष शक्तियां मिली हुई हैं।
करात ने कहा, “हमारे देश में तानाशाही लागू करना कठिन है। लेकिन अदृश्य रूप से छिपे तौर पर तानाशाही आ सकती है, जहां नागरिक स्वतंत्रता खत्म हो जाती है।”
माकपा नेता करात (67) हाल ही में पार्टी के महासचिव पद से हटें हैं और वह आपातकाल के वक्त को ‘रोचक’ और ‘रोमांच’ भरे वक्त के रूप में देखते हैं।
वह उस वक्त महज 27 साल के थे और नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से शोध कर रहे थे, जहां वह पार्टी की छात्र इकाई स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के अध्यक्ष थे। वह जेएनयू के 150 विद्यार्थियों को याद करते हैं, जिन्हें छात्रावास से एक रात गिरफ्तार कर लिया गया था और इनमें से कुछ को पूरे आपातकाल के दौरान जेल में रखा गया था।
उन्होंने कहा, “छात्र होने के नाते हम सरकार से लड़ रहे थे।”
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल के दौरान करात एसएफआई की बैठक के सिलसिले में कोलकाता में थे।
पार्टी ने अपने कुछ कैडरों के भूमिगत होकर काम करने का फैसला किया था। इसलिए करात ने एक नकली नाम रख लिया और कॉलेज प्राध्यापक के रूप में रहने लगे।
करात ने आईएएनएस को बताया, “मैं पी.सुधीर के नाम से रहता था। यह मेरे एक मित्र का नाम था, जो कि बाद में जेएनयू में मेरे साथ था।”
भूमिगत हो जाने का मतलब था कि वह अपने घर में नहीं रह सकते थे, न ही पार्टी कार्यालय जा सकते थे और न ही विश्वविद्यालय या फिर सार्वजनिक सभा में उपस्थित हो सकते थे। वह तब सार्वजनिक रूप से सामने आए जब उनकी मां का निधन हो गया।
उन्होंने कहा, “मुझे अस्पताल जाना पड़ा और अंतिम संस्कार में शामिल होना पड़ा।”
प्रकाश ने इसी दौरान पार्टी की सदस्य बृंदा करात से शादी की।
उन्होंने कहा, “यह औपचारिक नहीं था। हम मित्र के घर थे और हमने अपनी शादी की घोषणा कर दी।”
करात आपातकाल को उस रूप में याद करते हैं, जिसने उन नेताओं को पैदा किया, जिसने उन्हें उनकी पार्टी में मुख्य स्थान दिलाया।
उन्होंने कहा, “आपातकाल को लोकतंत्र पर प्रहार के रूप में देखा गया और लोगों में लोकतांत्रिक अधिकारों को बहाल करने की चाहत थी।”
करात ने आईएएनएस को बताया, “जो लोग एक-दूसरे खिलाफ थे, आरएसएस और माकपा ने एक रुख पर काम किया, साथ काम तो नहीं किया, लेकिन उनके बीच समन्वय था।”
उन्होंने कहा कि उस वक्त बड़ी हलचल नहीं थी, ज्यादातर नेता जेल में थे, लेकिन अगर आपातकाल लंबे वक्त तक रह जाता तो विद्रोह होता और लोग सड़कों पर आ जाते।