काठमांडू, 12 जनवरी (आईएएनएस)। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने कहा है कि अगले महीने प्रस्तावित अपनी भारत यात्रा के पहले वह मधेशी समस्या का हल निकाल लेंगे।
उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन कर मधेशियों की मांग को शामिल किया जाएगा। ओली ने आईएएनएस से कहा, “हम संसद में संविधान संशोधन का बिल लाने जा रहे हैं। हम मधेशियों को मौलिक अधिकार के रूप में विशेष अधिकार देने पर सहमत हैं। यहां लोकतंत्र है और कभी-कभी लोकतंत्र में ऐसी चीजें भी होती हैं। हमें उन्हें बर्दाश्त करना होता है।”
नेपाल में पिछले चार महीनों से मधेशी राजनीतिक दल संविधान संशोधन की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर तराई क्षेत्रों में लगातार धरना-प्रदर्शन होता रहा और कई लोगों को जान भी गंवानी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान भारत-नेपाल सीमा प्रवेश द्वारों को रोक दिया, जिससे नेपाल में खाने-पीने की चीजों से लेकर पेट्रोल-डीजल और दवाइयों तक की भारी कमी हो गई।
63 वर्षीय ओली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत माओवादी-लेनिनवादी) (सीपीएन-यूएमएल) के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने यह साफ किया कि वह हालांकि संविधान में संशोधन के खिलाफ हैं, लेकिन देश में लोकतंत्र लाने के लिए वह मधेशी पार्टियों की इस मांग पर राजी हुए हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले साल 20 सितंबर को घोषित किए गए नए संविधान में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है, बल्कि इसमें पिछड़े समुदाय को आगे लाने के लिए प्रतिस्पर्धी समाज बनाने पर जोर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि नए संविधान में पिछड़े वर्ग को निर्धारित क्षेत्रों में 45 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, जहां वे खुली प्रतियोगिता का हिस्सा हो सकते हैं।
ओली ने कहा कि मधेशी पार्टियों ने इसका विरोध करते हुए अनावश्यक रूप से भारत सीमा पर आपूर्ति को बाधित कर दिया।
ओली ने भारत द्वारा नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 नेपाल आए थे तो उनकी सोच की यहां चारो तरफ प्रशंसा हुई थी। लेकिन मधेशी आंदोलन के कारण नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई।
ओली ने कहा कि हालांकि अब हालात सुधरे हैं और मैं समझता हूं कि जल्द ही बिल्कुल सामान्य हो जाएंगे।
यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी भारत यात्रा से पहले मधेशी समस्या का समाधान हो जाएगा तो उन्होंने कहा, ‘हां’। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस यात्रा से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री के रूप में यह उनकी पहली विदेश यात्रा है।
नेपाल की वामपंथी पार्टी की सरकार ने संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा के नेताओं से कई दौर की वार्ता की है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है।
ओली ने कहा कि तराई में शोषण की बात कह कर संविधान का विरोध किया जा रहा है। लेकिन वहां असली मुद्दा जमींदारी है और शिक्षा की कमी के कारण लोगों में चेतना का अभाव है। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बेहतर बताते हुए कहा कि यहां ‘दहेज’ या ‘डायन’ जैसी सामाजिक समस्याएं नहीं हैं, क्योंकि लोग शिक्षित हैं।
ओली ने कहा, “पहाड़ी क्षेत्र में कोई जमींदारी नहीं है। यह सिर्फ तराई की समस्या है। इसके कारण केवल कुछ लोग ही आगे बढ़ पाते हैं और बाकी दबा दिए जाते हैं।”
ओली ने कहा कि नए संविधान में प्रतिस्पर्धी बहुपार्टी प्रणाली का प्रावधान है, जिसमें समय-समय पर चुनाव होंगे और सत्ता का विकेंद्रीकरण होगा। न्यायिक प्रणाली स्वतंत्र होगी और कई मौलिक अधिकार दिए गए हैं।
यह पूछे जाने पर कि मधेशियों की इस मांग पर उनका क्या कहना है कि संसदीय क्षेत्र का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर किया जाए। ओली ने कहा कि भारत में ‘भौगोलिक और जनसांख्यिक’ दोनों को ध्यान में रखकर संसदीय क्षेत्र का निर्धारण किया गया है।
उन्होंने कहा कि उन पहाड़ी क्षेत्रों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने की जरूरत है, जिनकी आबादी कम है।
उनके मुताबिक, मधेशी उन बातों की भी मांग कर रहे हैं, जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए उन्हें केवल खुद से संबंधित मुद्दों पर ही बात करनी चाहिए।
नेपाल के तराई क्षेत्र में 51 फीसदी लोग रहते हैं, लेकिन संसद में उन्हें केवल एक तिहाई सीटें ही दी गई हैं। इसके अलावा सरकारी नौकरियों में भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया है।