धर्मपथ-आप दम भर हवा से अपना सीना फुलाते हुए बोल सकते हैं कि भारत के इतिहास का सबसे बड़ा राहत पैकेज लाकर सरकार ने दिखा दिया है कि वो कितना कुछ कर सकती है. प्रधानमंत्री ने बीस लाख करोड़ रुपए का पैकेज लाने का एलान कर दिया. हताश, निराश और एक अभूतपूर्व संकट से जूझते देश को एक नया नारा दिया कि इस संकट को कैसे मौक़े में बदला जा सकता है.
कुल रक़म जोड़ लें तो बीस लाख करोड़ का मतलब है महीने में बीस लाख कमाने वाले एक करोड़ लोगों की तनख़्वाह. दो लाख कमाने वाले दस करोड़ लोगों की तनख़्वाह. बीस हज़ार कमाने वाले सौ करोड़ लोगों की तनख़्वाह. यानी एक सौ पैंतीस करोड़ के देश में हिस्सा बाँटें तो क़रीब क़रीब पंद्रह हज़ार रुपए हरेक के पल्ले पड़ जाएँगे.
सरकार पहले ही पौने दो लाख करोड़ रुपए अपने खाते से ख़र्च का एलान कर चुकी है. और रिज़र्व बैंक के ज़रिए भी उसने आठ लाख करोड़ रुपए बाज़ार में डालने का इंतज़ाम किया है. दोनों जोड़ लें तो लगभग दस लाख करोड़ रुपए का एलान पहले किया जा चुका है और पैकेज का आधा हिस्सा यानी सिर्फ़ दस लाख करोड़ रुपए और ख़र्च होना है.
लेकिन बात इतनी मामूली भी नहीं है. दस लाख करोड़ यानी दस ट्रिलियन आसान ज़ुबान में समझें तो दस के आगे बारह शून्य लगा लीजिए. और पहले के दस भी अभी पूरे ख़र्च तो हुए नहीं हैं. वो भी सिस्टम में आएँगे, बैंकों से निकलेंगे, बिज़नेस में जाएँगे, ख़र्च होंगे, इस जेब से उस जेब में जाएँगे तभी तो माना जाएगा न कि पैसा काम पर लगा है.
घर जाने के लिए जान देने पर उतारू ग़रीबों और मज़दूरों का क्या होगा, लॉकडाउन अब ख़त्म नहीं हुआ तो कब होगा और कितना लंबा चलता रहेगा. और मोदी जी ने एलान तो कर दिया है लेकिन ख़र्च के लिए पैसा आएगा कहां से?