इस्लामाबाद, 27 जनवरी (आईएएनएस)। पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने मंगलवार को कहा कि भारत-अमेरिका का रिश्ता कदाचित ‘खुशहाली और अवसरों’ के लिए है, जबकि पाकिस्तान-भारत का रिश्ता ‘तनाव और पूर्वाग्रहों’ को लेकर है।
इस्लामाबाद, 27 जनवरी (आईएएनएस)। पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने मंगलवार को कहा कि भारत-अमेरिका का रिश्ता कदाचित ‘खुशहाली और अवसरों’ के लिए है, जबकि पाकिस्तान-भारत का रिश्ता ‘तनाव और पूर्वाग्रहों’ को लेकर है।
अखबार ने यह बात ऐसे समय में कही है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का तीन दिवसीय भारत दौरा मंगलवार को समाप्त हुआ है।
समाचार पत्र डॉन ने अपने संपादकीय में कहा है, “अमेरिका और भारत ने जैसे ही गर्मजोशी भरी मित्रता का हाथ बढ़ाया है, एक असैन्य परमाणु समझौता अंतत: लागू होने की दिशा में आगे बढ़ चला है, जिसपर पहली बार सहमति 2006 में बनी थी। इसके अलावा कुछ छोटे स्तर के सैन्य समझौते भी सामने आए हैं, जिसे लेकर पाकिस्तान के कुछ हलकों में गंभीर बेचैनी हो सकती है।”
अखबार ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत और अमेरिका आर्थिक रूप से, कूटनीतिक रूप से, और भू-रणनीतिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक करीब हैं। जबकि पाकिस्तान-अमेरिका के रिश्ते में यह बात नहीं है।
संपादकीय में कहा गया है, “दक्षिण एशिया का रुझान बुनियादी रूप से अमेरिकी हितों के खिलाफ है, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह बाजार की अपनी तलाश भारत तक विस्तारित कर रहा है। इसके अतिरिक्त उभरते भारत को जितना महत्व दिया जा रहा है, उसे एशिया के पूर्वी हिस्से में स्थित चीन का जवाब माना जा रहा है।”
अखबार ने लिखा है कि न सिर्फ अमेरिका में लगातार बनी सरकारों ने यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान नई सदी का एक आवश्यक सहयोगी है, बल्कि यह भी बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान की अपने संबंधित क्षेत्र में अपनी-अपनी भूमिकाएं हैं।
संपादकीय में लिखा गया है, “नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच घनिष्ठ संबंध का अर्थ, सुरक्षा और पाकिस्तान स्थित आतंकवाद के मुद्दे पर इस्लामाबाद के खिलाफ दोनों देशों की गिरोहबंदी के बदले यह हो कि अमेरिका भारत पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच संवाद बहाल कराने की कोशिश करे।”
संपादकीय में आगे कहा गया है, “लेकिन ऐसा नहीं लगता कि मोदी सरकार के दृष्टिकोण में उन आवश्यक सुरक्षा परिणामों को प्रेरित करने के लिहाज से कुछ है। सुरक्षा को छोड़कर सिर्फ अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने से प्रधानमंत्री मोदी का भारत एकतरफा कमजोर ही होगा- मतलब, वह महसूस भी करेगा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।”