नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी-एम) के शोधार्थियों की एक टीम ने नियमों की उस प्रणाली का विकास किया है जो मल्टीपल स्कलेरोसिस (एमएस) बीमारी की पहचान को आसान बना देगी। बेहद छोटे जख्म होने की वजह से यह आसानी से नजर नहीं आती।
नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी-एम) के शोधार्थियों की एक टीम ने नियमों की उस प्रणाली का विकास किया है जो मल्टीपल स्कलेरोसिस (एमएस) बीमारी की पहचान को आसान बना देगी। बेहद छोटे जख्म होने की वजह से यह आसानी से नजर नहीं आती।
मल्टीपल स्कलेरोसिस (एमएस ) मस्तिष्क और मेरुरज्जा की वो विकृति है जिसमें तंत्रिका कोशिका आवरण पर धब्बा पड़ने के कारण तंत्रिकाओं के क्रियाकलाप में कमी आ जाती है। बहुत से मरीजों में लकवा के विभिन्न चरणों के लक्षण दिखाई देते हैं।
आईआईटी-एम के इंजीनियरिग डिजाइन विभाग के प्रोफेसर गणपति कृष्णमूर्ति ने इस शोध को करने वाली टीम की अगुआई की है। उन्होंने आईएएनएस को बताया कि एमएस से प्रभावित मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों का खाका बनाना बेहद कठिन और समय लेने वाला काम है। इसी वजह से अलग-अलग रेडियोलॉजिस्ट की एक ही इमेज पर राय अलग-अलग आती है। एमएस में 50 फीसदी राय ही एक-दूसरे से मिलती हैं।
उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने शोध में उन स्वचालित तरीकों के विकास पर जोर दिया है जो एमएस और ग्लीओमा यानि ब्रेन ट्यूमर जैसी समस्याओं के अलग-अलग हिस्सों के सही नतीजे दे सकें।
उन्होंने कहा कि इस सही विभाजन से इस समस्या के निरीक्षण और इलाज में और ऑपरेशन में मदद मिलेगी।
देश में हाल के दिनों में मल्टीपल स्कलेरोसिस (एमएस ) के मरीज़ों की संख्या तेजी से बढ़ी है। माना जा रहा है कि इस बीमारी के एक से दो लाख के बीच मरीज भारत में हैं। एम्स के एक अध्ययन के मुताबिक इस बीमारी के मरीज़ों में 70 फीसदी 18 से 35 आयु वर्ग के हैं।
कृष्णमूर्ति ने बताया कि शोध के नतीजों का फायदा ब्रेन ट्यूमर जैसी अन्य बीमारियों की पहचान करने और फिर उनका इलाज करने में भी होगा।
यह शोध करने वालों ने ‘डीप लर्निग’ तकनीक की मदद ली है। यह तकनीक न्यूरोसाइंस में हो रही खोजों और नर्वस सिस्टम में सूचना और संदेश की प्रक्रियाओं की व्याख्या से जुड़ी हुई है।