भारत की पत्रकार गुंजन शर्मा को जर्मनी के प्रतिष्ठित जर्मन डेवलपमेंट मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया गया है. भारत के मानसिक अस्पतालों पर उनकी रिपोर्ट को एशिया की सर्वश्रेष्ठ रिपोर्ट चुना गया.
जर्मन सरकार के लगभग 40 साल पुराने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने के बाद भारत की द वीक पत्रिका के लिए काम करने वाली गुंजन शर्मा ने कहा, “इस पुरस्कार से मुझे पत्रकार के तौर पर बहुत उत्साह मिला है कि मैं इस तरह के विषयों को उठाती रहूं, उनके बारे में और लिखूं. लोगों और सरकार को इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाऊं क्योंकि ये मुद्दे नजरअंदाज किए जाते हैं.” वह अवार्ड हासिल करने जर्मन राजधानी बर्लिन में थीं.
शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत के सरकारी मानसिक अस्पतालों में मरीजों के साथ कैसा व्यवहार होता है. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, “मरीजों को चार गुना पांच फीट की कोठरी में रहना पड़ता है. कई बार तो उन्हें अपने ही शरीर से निकला मैला खाने पर मजबूर होना पड़ता है.” शर्मा का कहना है कि इस तरह के पुरस्कार “भारत और दूसरे देशों की सरकारों के लिए संवेदना पैदा करने के लिए” भी जरूरी है.
भारत के मानसिक अस्पतालों की दिल दहला देने वाली हालत बयां करती रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह रिश्तेदार ही अपने घर के मानसिक रोगियों को “ट्रक ड्राइवरों के हवाले कर देते हैं, ताकि उन्हें जंगलों में अकेला छोड़ दिया जाए. और ट्रक ड्राइवर महिला मरीजों को जंगल में छोड़ने से पहले उनका बलात्कार करते हैं.”
पुरस्कार समारोह में जर्मनी के आर्थिक सहयोग और विकास मंत्री डिर्क नीबेल ने कहा, “कुछ देशों में पत्रकार सबसे खतरनाक काम कर रहे हैं. उनके काम पर प्रतिबंध लग रहे हैं और उन्हें ट्रेनिंग नहीं मिल रही है. इसके बाद भी वे अपने काम के प्रति कृतसंकल्प हैं.” उन्होंने कहा कि जर्मन मीडिया अवार्ड “उनके इस काम की पहचान करता है” क्योंकि जर्मनी की विकास सहयोग नीति के तहत अभिव्यक्ति की आजादी बेहद जरूरी है. पुरस्कार में उन विषयों को तवज्जो दी जाती है, जिन पर आम तौर पर रिपोर्टिंग नहीं होती है.
1975 में शुरू हुए इस पुरस्कार के पैट्रन जर्मन राष्ट्रपति हैं. यह जर्मनी की आर्थिक सहयोग और विकास मंत्रालय बीएमजेड और डॉयचे वेले द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है. भारत की शर्मा के अलावा अफ्रीका, लातिन अमेरिका, मध्य पूर्व, पूर्वी यूरोप, जर्मनी और लोगों की पसंद के आधार पर दुनिया भर के छह और पत्रकारों को मानवाधिकार और विकास की रिपोर्टिंग के लिए ये पुरस्कार दिए गए. उन्हें स्वतंत्र जूरी ने चुना और पुरस्कार के तौर पर उन्हें 2000 यूरो (करीब 1,60,000 रुपये) मिलेंगे.
बर्लिन में पुरस्कार समारोह में डॉयचे वेले के महानिदेशक एरिक बेटरमन ने कहा, “जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय ब्रॉडकास्टर होने के नाते हमें पता है कि कई देशों में पत्रकारों को किन हालात का सामना करना पड़ता है. इस बार हमने जो इंट्री देखी और सुनी, वे बेहद शानदार रहे.”
ज्यादातर इंट्री प्रिंट मीडिया से थी, जबकि ऑनलाइन और रेडियो पत्रकारों ने भी अपनी रिपोर्टें भेजी थीं. गुंजन शर्मा के अलावा भारत की दूसरी रिपोर्टों ने भी आखिरी दौर तक जगह बनाई.