बेंगलुरू, 4 अप्रैल (आईएएनएस)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में संभवत: एक युग का समापन हो गया। शनिवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का समापन हो गया, लेकिन उसमें पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के दो शब्द भी नहीं गूंज पाए। पार्टी के कई नेता हालांकि बार-बार यही दोहराते रहे कि आडवाणी ‘मार्गदर्शक’ हैं जिन्होंने राह दिखाई है।
प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बैठने के बाद जहां आडवाणी शीर्ष नीति निर्धारण प्रक्रिया से दूर हो गए हैं, वहीं भाजपा के सत्ता में आने के बाद पहली बैठक में उनकी चुप्पी साफ संदेश दे रही है कि पार्टी में आडवाणी-अटल बिहारी वाजपेयी का युग अब खत्म हो चुका है।
यह दूसरा अवसर है जब आडवाणी ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा है। आडवाणी उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने 1980 में पार्टी की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई थी।
संस्थापक नेता आडवाणी 1980 से पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सभी बैठकों में अपना उद्गार व्यक्त करते रहे हैं। वर्ष 2013 में गोवा में हुई बैठक से उन्होंने तब दूरी बना ली थी, जब पार्टी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने का रास्ता साफ करने लगी।
आडवाणी न केवल गोवा बैठक से दूर रहे, बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक समाप्त होने के एक दिन बाद उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया।
इस बार आडवाणी दो दिनों की बैठक में मौजूद तो रहे ही बेंगलुरू में आयोजित सार्वजनिक सभा के दौरान भी वे आसीन नजर आए। फिर भी इस नेता ने किसी भी मौके पर एक शब्द भी बोलना मुनासिब नहीं समझा।
पार्टी के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बात की पुष्टि तो कर दी कि आडवाणी ने कुछ नहीं बोला, पर इसके पीछे कारण क्या था, इसके बारे में कुछ भी कहने से मना कर दिया।
यह पूछने पर कि आडवाणी को वक्ताओं की सूची से बाहर रखने की भूमिका आखिर किसने निभाई, जेटली ने जवाब दिया, “जो भी इंतजाम किया गया (बैठक के लिए) वह पूरी पार्टी से विमर्श करने के बाद ही किया गया।”
यह पूछने पर कि क्या पार्टी मशहूर नेता के संबोधन की आवश्यकता नहीं समझती, या उन्होंने खुद को दूर कर लिया है? इसका जवाब देते हुए जेटली ने कहा, “पार्टी में फैसले लेने की प्रक्रिया में क्या कुछ हवा हो गया इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया जा सकता।”
उन्होंने कहा, “आडवाणी जी हमारे वरिष्ठ नेता हैं वे जब भी चाहेंगे हमें संबोधित कर सकते हैं।”
पार्टी के एक नेता ने अपना नाम जाहिर नहीं होने देने की शर्त पर बताया कि आडवाणी जी ने ही संबोधित नहीं करने का फैसला लिया।
आडवाणी देश के कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते हैं और अटलबिहारी वाजपेयी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में वे उपप्रधानमंत्री थे।
वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में वे भाजपा और राजग की तरफ से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थे। पार्टी में भाषण देने से अलग रहना तो और बात है, अमित शाह द्वारा कमान संभालने के बाद आडवाणी को संसदीय बोर्ड सहित सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं से अलग किया जा चुका है।
पार्टी में एक नया ‘मार्गदर्शक मंडल’ का गठन किया गया है, जिसमें आडवाणी, वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी के साथ ही मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल किए गए हैं।