भोपाल, 14 अगस्त (आईएएनएस)। ईमानदार और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। त्रिवेदी एक दिन भी किसी दफ्तर नहीं गए हैं, लेकिन उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार से सितंबर 2011 से अक्टूबर 2013 तक सहायक प्राध्यापक पद का वेतन हासिल किया है।
त्रिवेदी मूल रूप से लखनऊ स्थित इंस्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्न ॉलॉजी में सहायक प्राध्यापक रहे हैं। वह सितंबर 2011 से अक्टूबर 2013 तक राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) भोपाल में प्रतिनियुक्ति पर रहे हैं।
उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि इस अवधि को लेकर सरकारी महकमे में जो पत्राचार हुए हैं, उसके अनुसार त्रिवेदी ने किसी भी दफ्तर में आमद दर्ज नहीं कराई और उन्हें वेतन दिया जाता रहा है।
त्रिवेदी की प्रतिनियुक्ति से संबंधित दस्तावेज आईएएनएस के पास उपलब्ध हैं।
दस्तावेजों के मुताबिक, प्रतिनियुक्ति पर आए त्रिवेदी को आरजीपीवी ने दिल्ली के मध्य प्रदेश भवन में संपर्क अधिकारी के तौर पर पदस्थ किया था। त्रिवेदी ने इस दफ्तर में जाकर कभी भी पदभार नहीं संभाला।
इस बात का खुलासा नई दिल्ली स्थित मप्र भवन की तत्कालीन आवासीय आयुक्त स्नेहलता कुमार द्वारा 31 अक्टूबर, 2013 को आरजीपीवी के कुलसचिव को लिखे गए पत्र से होता है।
पत्र में कहा गया है, “डॉ. त्रिवेदी ने इससे पूर्व न तो इस कार्यालय को पदस्थी संबंधी अपनी कोई रपट प्रस्तुत की है, न किसी कार्य दिवस पर वह स्वयं उपस्थित ही हुए हैं। यह कार्यालय उनके वेयर अबाउट (कहां हैं) के बारे में अनभिज्ञ है।”
मप्र भवन के आवासीय आयुक्त का पत्र मिलने के बाद तकनीकी कौशल विकास विभाग ने भी आरजीपीवी के कुलसचिव को दिसंबर 2013 में पत्र लिखकर जानना चाहा था कि “अवगत कराएं कि सितम्बर 2011 से डॉ. त्रिवेदी कहां कार्यरत रहे।”
त्रिवेदी ने खुद भी इस बात का खुलासा किया है कि उन्होंने किसी भी कार्यालय में कार्यभार ग्रहण नहीं किया था। उन्होंने अपने मूल संस्थान यानी लखनऊ के इंस्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्न ॉलॉजी में वापस जाने के लिए किए गए आवेदन में इस बात का खुलासा किया है।
त्रिवेदी के 21 अक्टूबर, 2013 के पत्र के आधार पर आरजीपीवी के कुल सचिव ने राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव से त्रिवेदी को कार्यमुक्त कर उन्हें उनके मूल संस्थान में वापस भेजने की सहमति मांगी थी।
आरटीआई कार्यकर्ता ऐश्वर्य पांडे ने आईएएनएस से कहा, “त्रिवेदी की आरजीपीवी के कुलपति पीयूष त्रिवेदी से नजदीकियां हैं और उसी के चलते उन्हें उत्तर प्रदेश से प्रतिनियुक्ति पर लाया गया था। यह तो सामान्य प्रशासन विभाग को भी पता नहीं था कि त्रिवेदी दिल्ली के कार्यालय में पदस्थ रहे हैं और आरजीपीवी से वेतन हासिल करते रहे। उपलब्ध दस्तावेज यही बताते हैं।”
भोपाल प्रवास पर आए त्रिवेदी से जब शुक्रवार को आईएएनएस ने उनकी आरजीपीवी की प्रतिनियुक्ति के संदर्भ में सवाल किया, तो उन्होंने कहा, “उनकी प्रतिनियुक्ति नियम और प्रक्रिया के तहत हुई थी।”
त्रिवेदी से जब यह पूछा गया कि क्या वह कभी आरजीपीवी भोपाल या मप्र भवन, दिल्ली में उपस्थिति दर्ज कराने गए थे, तो उन्होंने कहा, “यह कोई बात नहीं है।”