लखनऊ, 4 अप्रैल (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा) और केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक बार फिर भगवान राम को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।
राम जन्मभूमि विवाद को लेकर पिछले दो दशकों से एक-दूसरे के खिलाफ हमलावर दोनों पार्टियां अब एक नए मुद्दे पर फिर से एक-दूसरे के खिलाफ आ गई हैं। यह नया मुद्दा कोष के अभाव में अयोध्या में लंबे समय से होने वाली रामलीला के साथ राम कथा रोके जाने को लेकर है।
केवल वर्ष 2013 में कुछ दिनों को छोड़ पिछले 11 वर्ष से राम कथा और रामलीला लगातार जारी है। अब यह रुक गया है, क्योंकि राज्य के संस्कृति विभाग ने कथित रूप से आवश्यक धन जारी नहीं किया है।
उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी शाखा अयोध्या शोध संस्थान की ओर से संचालित राम कथा और रामलीला को 2013 में थोड़े समय के लिए रोका गया था। इस कार्यक्रम के लिए दिए गए कोष को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पैतृक गांव सैफई में आयोजित महोत्सव के लिए दे दिए जाने के कारण यह कदम उठाना पड़ा था।
मजेदार यह है कि इस कार्यक्रम को 20 मई, 2004 को शुरू किया गया था। उस समय सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। एक अधिकारी ने कहा कि सोमवार से यह रुका पड़ा है। अधिकारी ने कहा कि यह फौरी तौर पर रुका हुआ है।
आयोध्या शोध संस्थान के प्रबंधक अविनाश कुमार ने कहा कि राम कथा रुका पड़ा है। उन्होंने हालांकि कोई ठोस कारण नहीं बताया जिससे अयोध्या के संत समुदाय नाराज हो गए और संतों ने इसे फिर से शुरू नहीं करने पर अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा, “यह न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि यह एक ऐसा फैसला है जिससे हिंदू समुदाय की भवना आहत होती है।” उन्होंने कहा कि यदि फैसला नहीं बदला गया तो पार्टी इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाएगी।
संस्थान को प्रति वर्ष राज्य से 2.75 करोड़ रुपये मिलते हैं और कोष का इस्तेमाल राम कथा और रामलीला के अलावा प्रकाशन और अनुसंधान जैसी गतिविधियों के लिए भी होता है। राम कथा और रामलीला का आनंद हर शाम सैकड़ों श्रद्धालु उठाते हैं।
बीते वर्षो में रामलीला का मंचन देश के हर हिस्से से आए करीब 150 मंडलियों द्वारा 55 शैलियों में हो चुका है। मंचन में मालदीव और इंडोनेशिया की मंडलियां भी शामिल हो चुकी हैं। मंचन देखने वालों में करीब 17 देशों से आए पर्यटक शामिल होते रहे हैं। मंचन की सराहना यूनेस्को भी कर चुका है और यूनेस्को ने इसे अमूर्त विरासत को संरक्षित रखने का एक सराहनीय प्रयास करार दिया है।
राज्य सरकार के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। अधिकारियों ने कहा कि उन्हें इस मामले पर अपने वरिष्ठों से बात करनी होगी।