बंदर सेरी बेगावान, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। समलैंगिक संबंधों के लिए पत्थर मारकर मौत की सजा देने के शरिया कानून को लागू करने के लिए चौतरफा आलोचना से घिरे ब्रुनेई ने कहा है कि इस कानून का लक्ष्य ‘सजा के बजाए बचाव’ है।
ब्रुनेई ने कहा है कि वह व्याभिचार और पुरुषों के बीच समलैंगिक संबंधों के लिए पत्थरों से मारकर मौत की सजा देने के इस्लामी कानून को लागू करेगा। ब्रुनेई के राजतंत्र ने यह कहते हुए ऐसी सजा को संख्या में बेहद कम होने वाली कहा है कि इस तरह के मामलों में सबूत आसानी से नहीं मिलते।
संयुक्त राष्ट्र ने इस सजा को क्रूर व अमानवीय बताया है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र की निंदा के जवाब में ब्रुनेई के विदेश मंत्री एरवान यूसुफ ने गुरुवार को एक बयान में कहा, “शरिया कानून का जोर सजा से अधिक बचाव पर होता है। इसका लक्ष्य सजा देने के बजाए शिक्षित करने, निवारक उपाय करने, प्रतिष्ठा लौटाने का होता है।”
बयान में उन्होंने कहा है, “शरीयत यौन आधार व यौन विश्वास के आधार पर अपराध का निर्धारण नहीं करती, इसमें समलैंगिक सेक्स संबंध भी शामिल है। व्याभिचार और अप्राकृतिक मैथुन को अपराध बनाना पारिवारिक विरासत और किसी भी मुस्लिम की निजी तौर पर, विशेषकर महिलाओं की पवित्रता की हिफाजत के लिए है।”
इस तरह की सजा के बेहद कम होने की तरफ इशारा करते हुए बयान में कहा गया है कि इस तरह के अपराधों में अंग विच्छेद या मौत की सजा देने के लिए दो ‘बेहद उच्च नैतिक व धर्मनिष्ठ’ पुरुषों की गवाही की जरूरत होती है। इन दोनों का बेहद उच्च स्तर होना चाहिए और ऐसे लोगों का मिलना आज के समय में बेहद मुश्किल है।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने ब्रुनेई के विदेश मंत्री से बात की है और उन्होंने संकेत दिया है कि शरीयत के हिसाब से सजा पर अमल होना असंभव ही है।
महिलाओं के बीच सेक्स संबंध होने की सजा बेंत से 40 बार मारा जाना या अधिक से अधिक दस साल की जेल की सजा है।
दुष्कर्म, व्याभिचार, अप्राकृतिक मैथुन, डकैती और पैगंबर मुहम्मद के अपमान के मामलों में मौत की सजा तक हो सकती है।
शरीयत कानून का पहला चरण ब्रुनेई में 2014 में लागू हुआ था। दूसरा चरण बीती तीन अप्रैल को लागू किया गया।