टीकमगढ़ (मप्र), 5 अप्रैल (आईएएनएस)। संघर्ष और साहस का प्रतीक रहा बुंदेलखंड अब सूखे और जलसंकट के लिए जाना जाता है, मगर यहां के लोगों में विपरीत हालात से लड़ने का जज्बा अब भी कायम है। यही कारण है कि टीकमगढ़ जिले के कुछ गांवों के ‘आधुनिक भगीरथों’ ने अस्तित्व खो रहे चंदेलकालीन तालाबों का कायाकल्प कर धरती को पानीदार बनाने की मुहिम छेड़ दी है। उनकी मुहिम अब रंग लाने लगी है।
टीकमगढ़ (मप्र), 5 अप्रैल (आईएएनएस)। संघर्ष और साहस का प्रतीक रहा बुंदेलखंड अब सूखे और जलसंकट के लिए जाना जाता है, मगर यहां के लोगों में विपरीत हालात से लड़ने का जज्बा अब भी कायम है। यही कारण है कि टीकमगढ़ जिले के कुछ गांवों के ‘आधुनिक भगीरथों’ ने अस्तित्व खो रहे चंदेलकालीन तालाबों का कायाकल्प कर धरती को पानीदार बनाने की मुहिम छेड़ दी है। उनकी मुहिम अब रंग लाने लगी है।
मध्य प्रदेश का टीकमगढ़ जिला कभी पानी के मामले में समृद्ध इलाका हुआ करता था, क्योंकि यहां चंदेल राजाओं ने नौवीं से 12वीं शताब्दी के बीच जलाशयों की श्रृखंला का निर्माण कुछ इस तरह कराया था कि कुओं और अन्य जलाशयों में जलस्तर बना रहे। यही कारण था कि यहां के कुओं में सालभर पानी रहा करता था। वक्त गुजरने के साथ तालाबों का वजूद खत्म होता गया।
सेटेलमेंट रिकार्ड 2003 बताता है कि यहां 962 तालाब थे जो कम होते गए और अब इनकी संख्या घटकर अब 421 रह गई है।
टीकमगढ़ जिले में एक तरफ तालाब खत्म हो रहे हैं तो दूसरी ओर बारिश का प्रतिशत भी कम हो रहा है। यहां बढ़ते जलसंकट ने खेती को भी पर्याप्त प्रभावित किया है। ओरछा स्टेट का 1907 का गजट बताता है कि यहां पांच लाख एकड़ रकबे में खेती होती थी, जिसमें से डेढ़ लाख एकड़ रकबे में सिंचाई का साधन तालाब हुआ करते थे, मगर 1947 आते तक यह रकबा घटकर बीस हजार एकड़ रह गया। उसके बाद तालाबों से सिंचित होने वाला रकबा साल दर साल कम होता जा रहा है।
पानी के गहराते संकट के बीच कुछ गांव के लोगों में परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने अलख जगाया और उन्हें बताया कि अगर तालाब बचेंगे तो जीवन बचेगा। गांव के लोगों ने हाथ से हाथ मिलाकर तालाबों का रूप बदल दिया है। यहां एकीकृत जल प्रबंधन परियोजना के तहत हुए काम से तालाब सुधरे तो कुओं और हैंडपंपों का जलस्तर भी बढ़ गया है।
जतारा जनपद क्षेत्र के बनगांय के चंदेलकालीन तालाब के किनारे बैठे गोकुल केवट उठती हिलोरें देख प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा कि अब से चार साल पहले इस तालाब में मार्च का माह आने तक पानी नहीं, जमीन नजर आने लगती थी। पानी के लिए तालाब के बीच में कुआं खोदना पड़ता था, मगर अब ऐसा नहीं है। इस वर्ष बारिश औसत से कम हुई फिर भी तालाब में पानी है और उम्मीद है कि जून तक का समय आसानी से गुजर जाएगा।
गांव के रतिराम गर्मी के मौसम में गहराने वाले पानी के संकट की याद कर कहीं खो जाते हैं। वे बताते हैं कि पहले महिलाओं को दो किलोमीटर का रास्ता तय कर पानी लाना होता था, अब ऐसा नहीं है, गांव के लेागों ने तीन वर्ष पूर्व श्रमदान कर तालाब के सलूस को दुरुस्त कर दिया है, जिससे बरसात में बर्बाद होने वाला पानी सलूस से बाहर निकलकर बनाई गई कच्ची तथा पक्की नालियों के जरिए खेतों और अन्य जल संरचनाओं तक पहुंच जाता है।
वहीं तालाब में जलभराव होने से गांव के कुओं और हैंडपंप का जलस्तर बना हुआ है। साथ ही तालाब में पानी होने के कारण मवेशी भी मौज कर रहे हैं। वहीं फसल की पैदावार 36 क्विंटल तक बढ़ गई है और मछली पालन से भी आय बढ़ी है।
इसी तरह कोंडिया गांव में गर्मी के मौसम में भी मकान बनाने का काम चल रहा है। यह ऐसा गांव था, जहां मार्च में लोग पीने के पानी को तरसने लगते थे।
गांव में बनी पानी पंचायत के अध्यक्ष रामस्वरूप चतुर्वेदी बीते वर्षो की याद करते हुए बताते हैं कि गर्मी आते ही आंखों में आंसू आने लगते थे, क्योंकि पानी के लिए तरसना सबसे बड़ी समस्या थी। खेत बंजर होते थे और कुएं व हैंडपंप सूखने लगते थे। मगर ग्रामीणों ने अपने ज्ञान और आधुनिक तकनीक के जरिए तालाब का सीपेज बंद कराया, जिससे पानी की बर्बादी तो खत्म हो ही गई है, साथ ही अप्रैल में भी तालाब पानीदार बना हुआ है।
इसी गांव के भगवान दास वंशकार कहते हैं कि अब तो जानवरों के लिए भी पानी आसानी से मिल रहा है, यही कारण है कि चंदेलकालीन तालाब में जानवर भी गर्मी से छुटकारा पाते नजर आ जाते हैं। अब जरूरत है कि इन तालाबों का गहरीकरण कराया जाए।
उन्होंने बताया, “कांटी और गोर गांव के लोगों ने अपनी मेहनत के बल पर तालाबों का हाल सुधार दिया है। कांटी में तो आठ फुट की गहराई पर कुओं में पानी है। वहीं गोर में मछली पालन व उपज का प्रतिशत बढ़ गया है।”
टीकमगढ़ जिले के आधुनिक भागीरथ उन लोगों के लिए आदर्श बन गए हैं, जो हमेशा सरकारों की तरफ ताकते हैं और व्यवस्था को कोसने से नहीं हिचकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि चंदेलकालीन तालाबों के पुनरुद्धार की बुंदेलखंड के भागीरथों की यह पहल आगे भी बढ़ती रहेगी, जिसके चलते चंदेलकालीन तालाब एक बार फिर अपने मूर्तरूप में आकर इस इलाके को पानीदार बना देंगे।