झांसी, 7 जून (आईएएनएस)। सूखा, जलसंकट और पलायन को लेकर देशभर में चर्चित बुंदेलखंड की महिलाओं ने जल सहेली बनकर कई गांवों की तस्वीर बदल दी है, उन्होंने अपने श्रम से पुराने जलस्रोतों को पुनर्जीवित कर दिया है और बर्बाद होते पानी को उपयोगी बना डाला है। बुंदेलखंड की ये जल सहेलियां केंद्र सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा ग्रामीण स्तर पर जल संरक्षण के लिए शुरू किए गए जल क्रांति अभियान के लिए आदर्श बन सकती हैं।
झांसी, 7 जून (आईएएनएस)। सूखा, जलसंकट और पलायन को लेकर देशभर में चर्चित बुंदेलखंड की महिलाओं ने जल सहेली बनकर कई गांवों की तस्वीर बदल दी है, उन्होंने अपने श्रम से पुराने जलस्रोतों को पुनर्जीवित कर दिया है और बर्बाद होते पानी को उपयोगी बना डाला है। बुंदेलखंड की ये जल सहेलियां केंद्र सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा ग्रामीण स्तर पर जल संरक्षण के लिए शुरू किए गए जल क्रांति अभियान के लिए आदर्श बन सकती हैं।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को देशव्यापी जलक्रांति अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान का उद्देश्य अनुपयोगी जल को उपयोगी बनाना, भूजल स्तर को बढ़ाना, परंपरागत जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना और सिंचाई जल प्रबंधन है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत देश के 762 जिलों में एक-एक जलग्राम चयनित किया जाना है। इतना ही नहीं पानी के प्रति जनजागृति लाने के लिए जल मित्र बनाए जाएंगे, इन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा।
केंद्र सरकार जहां देश व्यापी अभियान पर काम कर रही है, तो वहीं बुंदेलखंड में महिलाओं ने पानी बचाने और संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है। यह वह इलाका है, जिसमें केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती का संसदीय क्षेत्र झांसी-ललितपुर आता है। बुंदेलखंड के तीन जिलों हमीरपुर, जालौन और ललितपुर की 60 ग्राम पंचायतों के 96 गांव की जल सहेलियों ने तस्वीर ही बदल दी है।
बदले हालातों की चर्चा करें तो हमीरपुर जिले के सरीला विकासखंड के गोहनी गांव का तालाब अब साफ सुथरा नजर आता है। इस तालाब के पानी का उपयोग भी लोग करने लगे हैं।
इस गांव की जल सहेली सावित्री पांच वर्ष पूर्व की स्थिति को याद कर कहती हैं कि यह तालाब गंदगी का अड्डा बन गया था, मगर महिलाओं ने एकजुट होकर तालाब की न केवल सफाई की, बल्कि श्रमदान कर सौंदर्यीकरण किया। इसी का नतीजा है कि यह आज तालाब जैसा नजर आ रहा है। इस तालाब की जल संग्रहण क्षमता बढ़ने से अन्य जलस्रोतों का भी जलस्तर बढ़ गया है।
जालौन जिले की कुरौती गांव की जल सहेली अनुजा देवी ने महिलाओं को एक जुट कर तालाब, कुओं और पोखरों की तस्वीर ही बदल दी है, कभी वीरान व सूखे रहने वाले यह जलस्रोत अब लोगों का सहारा बन गए हैं। यही कारण है कि उसे पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सम्मानित किया।
ललितपुर जिले के कई गांव में पानी प्रबंधन के लिए किए गए महिलाओं के प्रयास नजर आते हैं। तालबेहट विकासखंड के कलोथरा गांव की रामवती पिछले दिनों को याद नहीं करना चाहती। उनका कहना है कि गांव के जलस्रोतों के सूखने पर सबसे ज्यादा महिलाओं को ही परेशान होना पड़ता था, मगर जल संरक्षण की कोशिशों से हालात काफी सुधर गए हैं। गर्मी के मौसम में भी पानी आसानी से मिल जाता है।
बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह कुल मिलाकर 13 जिले आते हैं। शुष्क जलवायु वाले इस इलाके में औसतन 950 मिली मीटर बारिश होती है, मगर हर तीन से पांच वर्ष के अंतराल से आने वाला सूखा यहां के हाल बद से बदतर कर देता है और अगर एक दशक की वर्षा के औसत को निकालें तो वह 500 मिली मीटर के आसपास आकर रह जाता है। यही वजह है कि जलस्रोतों से गर्मी के मौसम में पानी हासिल कर पाना मुश्किल हो जाता है।
बुंदेलखंड के समाज के परिवारों की संरचना पर गौर करें तो एक बात साफ होती है कि पानी का इंतजाम महिलाओं के हिस्से में आता है। चाहे पीने का पानी कई किलो मीटर दूर से ही क्यों न लाना पड़े। यहां के पुरुष प्रधान समाज को कभी भी यह गवारा नहीं रहा कि वह पानी भरने जैसा काम करे।
इलाके की महिलाओं की पानी संबंधी समस्या को केंद्र में रखकर यूरोपियन यूनियन के सहयोग से परमार्थ समाज सेवा संस्थान ने पानी पर महिलाओं की पहली हकदारी परियोजना की वर्ष 2011 में शुरुआत की थी।
इस परियोजना के तहत चयनित गांव में पानी पंचायतें बनीं, हर पानी पंचायत में 15 से 25 महिलाओं को स्थान दिया गया। प्रत्येक पानी पंचायत से पानी व स्वच्छता के अधिकार, प्राकृतिक जल प्रबंधन, महिलाओं का पानी के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिए दो महिलाओं को जल सहेली बनाया गया। जल सहेली उन्हीं महिलाओ को बनाया जाता है, जिनमें पानी संरक्षण के साथ गांव के विकास की ललक हो और उनमें नेतृत्व क्षमता भी हो।
परमार्थ के सचिव संजय सिंह ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि चयनित जल सहेलियों को कई तरह का प्रशिक्षण दिया गया तथा राजस्थान के अलवर का भ्रमण कराया गया, जहां जलपुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने जल संरक्षण के लिए काम किया है। इसका नतीजा यह हुआ कि जल सहेलियों को इस बात का भरोसा हो गया कि वे चाहें तो अपने गांव को पानीदार बना सकती है।
बुंदेलखंड की महिलाएं साहस और पराक्रम का प्रतीक रही हैं, यही कारण है कि उन्होंने सूखी धरती को पानीदार बनाने की चुनौती को न केवल स्वीकार किया, बल्कि अपने मकसद में कामयाब होती भी नजर आ रही हैं। जल सहेलियों का यह अनुभव केंद्र सरकार के जल क्रांति अभियान में मददगार साबित हो सकता है।